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दीप -गाथा (दोहे) -कमल कपूर


देह-दान दीपक करे,जले वर्तिका संग ।
परहित पर उपकार के,अपने-अपने ढंग ।।

दीपक माटी का जना,ना निर्धन न अमीर ।
सूफ़ी के पैग़ाम सा,है इक शाह-फ़क़ीर ।।

मावस के धरती-गगन,झूमें संग उमंग ।
आज तिमिर से रोशनी,जीतेगी इक जंग ।।

उजियारा होता सदा,अंधकार का तोड़ ।
इक दीपक की रोशनी,चमकाए सौ मोड़ ।।

धुआँ पहन बाती जली,जोत रही थी जाग ।
दीपक सब यश ले गया,अपने-अपने भाग ।।

चल दीपक हम-तुम जलें, समर-भूमि में आज ।
वीर-सुतों ने थी रखी,जहाँ देस की लाज ।।

मन के मंदिर में जले,इक दीपक दिन-रैन ।
प्राणों का घृत सींचके,पावे हिवड़ा चैन ।।

-कमल कपूर,फ़रीदाबाद

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