✍️आयुष गुप्ता
ज़िन्दगी में इस क़दर सि'तम मिल रहे हैं
हर खुशी के साथ अब ग़म मिल रहे हैं
हैं मुझे ग़म भी बिछड़ने का अभी से
और ये मुझको खुशी हम मिल रहे हैं
ना मिला कोई मुक़ाबिल शख़्स तेरे
ये अलग हैं बात, हमदम मिल रहे हैं
लग न जाए लत कहीं तेरी मुझे फिर
एहतियातन हम तुझे कम मिल रहे हैं
देखना जिसको कभी ना था मयस्सर
हर जगह उस शख़्स से हम मिल रहे हैं
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