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दीपक का वरदान (कविता) -संजय वर्मा 'दृष्टि'


टिमटिमाते दीये से पूछा -
महंगाई का हाल
मुस्कुराके वो होले से बोल उठा -
मेरी तरह इन्सान त्रस्त है
मैं  तो ईश्वर का माध्यम हूँ
मेरी बदौलत ही इन्सान
ईश्वर से जीवन मे कठिनाइयों को
दूर करने की चाह रखता है
तो क्यों न मांग लू मैं भी ईश्वर से
महंगाई दूर करने का वरदान
मैं  तो एक छोटा सा दीया हूँ
जो देता आया हूँ हर घर में
विश्वास और आस्था का हौसला
किन्तु मुझे भी डर है
भ्रष्टाचार की आंधियों से
जो मुझे बुझा ना दे
सच्चाइयों के हाथों की आड़ लेकर
इंसानों ,ढांक लो जरा मुझे
अगर मैं  बुझ गया तो इन्सान कभी
महंगाई कम होने का वरदान इंसान
दीपावली पर।
मांग ना सकेगा ईश्वर से।

-संजय वर्मा 'दृष्टि',मनावर (धार)

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