चलो फिर से नई -नई राहें बनाएं।
नये आशियाने, नई बस्ती सजाएं।।
अदावत की बातें न गुज़रे होंठों से,
अमन-चैन भरी बस बहार ही छाए।
मुहब्बत की हर तरफ फुआर ही बरसे,
एक रंग में सब के सब भींगते जाएं।
दर्द हो न ग़म हो, न हो हादसे कहीं,
भंवरों की तरह ही ज़िंदगी गुनगुनाएं।
नींद की लुत्फ़ खूब हो चुकी रह पर,
अब न कोई धूप की चादर को बिछाएं।
वतन अपना सबसे प्यारा है जहां में
बस, यही नारा हर ज़ुबां पर आए।
दहशत भरे धंधे बहुत सह चुके 'दीक्षित'
हर एक ज़हन में अब भरोसा ही बौराए।
-यशवंत दीक्षित,बिड़लाग्राम नागदा
0 टिप्पणियाँ