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रैन अमा की खिल गई (दोहा गीत) -डॉ सुमन सुरभि


रैन अमा की खिल गई,
जगमग करते द्‍वार।
दीपमालिका सज गई,
चौखट बंदनवार।

जैसा धरती से लगे,
तारामय आकाश।
नभ से ऐसे दिख रहा,
झिलमिल दीप प्रकाश।

नन्हें नन्हें दीप से,
गया अँधेरा हार।।

दीपक सँग बाती जले,
मौन जल रहा तेल।
सीख त्‍याग की दे रहा,
इन तीनों का मेल।

प्रेम समर्पण से चले,
ये सारा संसार।।

बाती गुपचुप जल गई,
दे प्रकाश का दान।
दीपक से निज नेह का,
बढा़ गई सम्‍मान।।

सुखमय कटते प्रेम से,
जीवन के दिन चार।।

सुरभित आलोकित हुआ,
पावन पूजा थाल।
हर कोना हो ज्‍योतिमय,
निशि दिन पूरे साल।।

कलुष, भाव का भी मिटे,
निर्मल रहें विचार।।

कुटिया में भी रंक के,
ज्‍यों उतरे दिनमान।
दीवाली तब सार्थक,
जब उल्‍लास, समान।।

राम राज्‍य का स्‍वप्‍न भी,
होगा तब साकार।।

-डाॅ सुमन सुरभि, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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