म.प्र. साहित्य अकादमी भोपाल द्वारा नारदमुनि पुरस्कार से अलंकृत

तुम्हारी कमी खल रही है (गीत) -मयंक तिवारी


तुम्हारी गली से गुज़रने का मतलब
हमें फिर तुम्हारी कमी खल रही है

सफ़र में, समर में, मोहब्बत के घर में
तुम्हीं एक साथी थे जीवन -डगर में
हो रस्ता कोई या कि हो कोई मंज़िल
पहुँचते थे तुम तक तुम्हारे शहर में
सँभाले जो अबतक प्रणय गीत हमने,
अधर पर उन्हीं की नमी जल रही है..
तुम्हारी गली से....

निभाएंगे वादे किए जो नहीं थे
जिएंगे प्रणय क्षण जिए जो नहीं थे
विरह के चरण में विदा-अलविदा के
वो नग़्मे सदा के लिए तो नहीं थे
निगाहें हमारी, हैं आँसु तुम्हारे,
निगाहों पे फिर शबनमी ढल रही है..
तुम्हारी गली से...

-मयंक तिवारी, वाराणसी

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