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लक्ष्मी का जन्म कैसे हुआ

दीपावली विशेष-

लक्ष्मी का जन्म कब और कैसे हुआ, इस संबंध में पुराणों में अत्यंत ही रोचक कथाएं मिलती हैं। वैसे लक्ष्मी एक वैदिक देवी हैं जिनका वर्णन वेदों में सौंदर्य एवं शोभा की देवी के रूप में हुआ है किंतु धन एवं ऐश्वर्य की देवी के रूप में इनकी प्रतिष्ठा बाद में हुई।

’ब्रह्म वैवर्त पुराण’ में प्रकृति खंड के पैंतीसवें अध्याय में लक्ष्म्युपाख्यान में उल्लेख आया है कि एक बार दुर्वासा ऋषि ने भगवान विष्णु को चढ़ाया हुआ फूल प्रसाद के रूप में इंद्र को दिया। इंद्र ने उस फूल को हाथी के मस्तक पर रखकर अपमान किया। इसको दुर्वासा ने अपना अपमान समझा एवं क्रोधित होकर इंद्र को शाप दिया कि जिसके मस्तक पर पवित्र फूल रखा गया है, वही प्रथम पूजा जाएगा तथा तुम्हारी राज्यलक्ष्मी भी तुम्हारा त्याग कर देगी।

दुर्वासा के शाप से इंद्र घबरा गए और दौड़े-दौड़ ब्रह्माजी के पास गए। ब्रह्माजी इंद्र को लेकर विष्णु के पास गए। विष्णु ने कहा कि मैं लक्ष्मी के साथ उस घर में वास नहीं करता जो मेरे भक्त का अपमान करता है। यह कहकर विष्णु ने लक्ष्मी को क्षीरसागर से उत्पन्न होने की आज्ञा दी और देवताओं को लक्ष्मी की प्राप्ति हेतु समुद्र मंथन करने को कहा।

समुद्र मंथन से चौदह रत्न प्राप्त हुए जिसमें से लक्ष्मी भी एक थीं। लक्ष्मी का वरण विष्णु ने किया। इसके बाद विष्णु द्वारा बताई गई पूजा विधि के अनुसार इंद्र ने स्वर्ण कलश पर गणेश, दिनेश, अग्नि, विष्णु, शिव एवं पार्वती की पूजा की। तत्पश्चात लक्ष्मी का आह्वान ब्रह्माजी द्वारा बताए गए मंत्र से किया गया। इस तरह इंद्र ने ध्यान कर पोडशोपचारों द्वारा लक्ष्मी की पूजा की एवं ब्रह्मा द्वारा बताए गए मंत्र का पांच लाख बार जाप किया जिससे प्रसन्न होकर लक्ष्मी प्रकट हुई।

लक्ष्मी के प्रकट होने पर इंद्र ने पुनः उनकी स्तुति की। इंद्र की स्तुति से प्रसन्न होकर लक्ष्मी ने इंद्र को वरदान दिया कि तुम्हारे द्वारा किए गए इस द्वादशाक्षर मंत्र का जो व्यक्ति नियमित रूप से प्रतिदिन तीनों संध्याओं में भक्ति पूर्वक जप करेगा, वह कुबेर के सदृश ऐश्वर्य युक्त संपन्न हो जाएगा। इस प्रकार इसके बाद यथासमय ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी का जन्म हुआ एवं पूजन विधि प्रचलित हुई।

-गुरिन्द्र भरतगढ़िया
(अदिति फीचर )

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