असर हालात का ऐसा हुआ है
अकेलापन भला लगने लगा है
बहारों का ख़िज़ाँ से राब्ता है
ये क़ुदरत का अनोखा सिलसिला है
अजब है आदमी की ज़िंदगी भी
कभी नेमत कभी लगती सज़ा है
मदद करता है जब कोई किसी की
तो लगता सामने आया ख़ुदा है
हुआ है गिद्ध से इंसान बदतर
ये ज़िंदा जिस्म को भी नोचता है
यही तो आपकी पहचान होगी
करो वो काम जो करना मना है
जो बोया है वही काटोगे इक दिन
बुज़ुर्गों से 'अनिल' हमने सुना है
-डॉ अनिल जैन, सागर (म.प्र)
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