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महके हैं गुलिस्तां (ग़ज़ल)


खुश रहेगी ये ज़मीं ,खुश रहेगा आस्मां।
हर दिल में बस जाए ग़र प्यार का जहां।।

ख़ामोश ख़िज़ाओं में मिले प्यार की खुश्बू,
महक उठेगा सारा ताज़गी से ये समां।।

शउर-ए-मुहब्बत -औ-इबादत की राहों में,
होते नहीं फ़ुज़ू ज़लज़ले -औ-आंधियां।।

मेहनतकश ने कब भला फ़रियाद की कहीं,
बनती गई राहें उधर, जो पग धरे जहां।।

सितारों की तरह बन के बसे हैं जो नैनों में,
ज़ुल्मत रहे या धूप, है हर वक्त कहकशां।।

पड़ता कहां है फ़र्क,जो मौसम हो बे-वफ़ा,
पैगाम-ए-वफ़ा से ही तो,महके हैं गुलिस्तां।।

माहौल -औ-मंज़र कहीं बिगड़ा भी हो 'दीक्षित'
हमने खुलुसो-प्यार लुटाया है वहां -वहां।।

शऊर=तरीका फ़ुज़ू=मंत्रमुग्ध / ज़ुल्मत=अंधेरा
खुलुसो-प्यार=मित्रता -प्रेम

-यशवंत दीक्षित ,नागदा (म.प्र.)

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