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जीवन-घट फिर रीत गया (गीत)


जीवन-घट फिर रीत गया।

हर कंठ अवरुद्ध हुआ,
कण-कण विरुद्ध हुआ
सांसों से रिस,संगीत गया।

तन बोझिल, मन नीरव ,
गंधाने लगे स्वप्न के शव,
अनसुना रह मृत्यु-गीत गया।

सोंचे क्यों बहुत सोच लिया ,
जीवन शब्द-शब्द नोच लिया ,
जब हो जीवित अतीत गया ।

विपरीत पड़े सदैव ही पांसे ,
व्यथित हो रुकी नहीं साँसे
जो बीत गया सो बीत गया ।

-कमलेश कँवल, उज्जैन (म.प्र.)





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