रोज़ करते नहीं ख़ताएं हम।
रूठने का नहीं सबब जब कुछ,
बेसबब क्यूँ उसे मनाएं हम।
कामयाबी न हाथ आ पायी,
कर चुके अनगिनत सभाएं हम।
याद दिल में रची बसी उनकी,
किस तरह से उन्हें भुलाएं हम।
जुर्म हरगिज़ नहीं है जब कोई,
पा रहे क्यूँ भला सज़ाएं हम।
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