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जीवन है अनबूझ पहेली (छंद- आल्‍ह)



*डॉ गोपालकृष्ण भट्ट आकुल

 

जीवन है अनबूझ पहेली, कब क्‍या होगा जाने कौन?

पल भर में जाने क्‍या से क्‍या, हो जाये पहचाने कौन?

 

वज्रपात, भूकंप, संक्रमण, सीमा पर बढ़ते जंजाल,

टिड्डी दल के हुए आक्रमण, कितने करे बहाने कौन?

 

प्रकृति आज खुश है मानव खुद, है अपने चंगुल में आज,

सुख समृद्धि से अहं भरा हो, बुद्धिमान की माने कौन?

 

ठप्‍प व्‍यवस्‍थाएँ हैं सारी, हुए धराशायी अनुमान, 

मानव की करनी है जाये, मानव को समझाने कौन?

 

सुलझाएगा अब निसर्ग ही, कई प्रहेलिका कूट प्रश्‍न,

आएगा किस रूप न जाने, जीवन आज बचाने कौन?

 


*कोटा (राज)

 


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