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देखा कबूतरी ने मुझे बाज समझ कर



✍️अंकुर सहाय 'अंकुर'

कुछ ख़ास मेरे प्यार का अंदाज़ समझ कर ।

देखा कबूतरी ने मुझे बाज समझ कर ।।

 

आ आ के मेरा गीत मुझे ही सुना गए ,

लोगों ने बजाया है मुझे साज़ समझ कर ।।

 

मथुरा की राह में ही था गुरुदेव का मन्दिर !

मैंने दीदार कर लिया था ताज़ समझ कर ।।

 

थी खाट सभा में रखी टूटी हुई कुर्सी ,

भैया जी गए बैठ तख्त़़ -ओ-ताज समझ कर ।।

 

थाने में खड़ी भैंस ने रो रो के ये कहा

यू पी की पुलिस पकड़ ली गजराज समझ कर ।।

 

बचपन की, जवानी की, बुढ़ापे की गोरियां !

सबने परत उतार दिया प्याज़ समझ कर ।। 


*ग्राम -खजुरी, अहरौला,आजमगढ़,उत्तर प्रदेश


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