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बीते सावन तुम बिन








✍️उपेन्द्र द्विवेदी

रिमझिम रिमझिम रिमझिम

बीते सावन तुम बिन तुम बिन 

 

अल्हड़ मेघों     की टोली 

प्रियतम यह मुझसे बोली 

भीगा तन , क्यूं भीगा मन 

संग नहीं क्यूं हमजोली ? 

 

हुई धरा की चूनर धानी 

कल-कल बहता है रे पानी 

मदांध बहे उन्मत्त पवन 

क्यूं बात पिया ने न मानी?

 

हो शांत लिए एकान्त ? 

काट रहे दिन गिन-गिन 

 

कली-कली करती गुंजन 

अधरों पर ले कर चुंबन 

गीत प्रणय के गाता जग 

छाता नभ में जब सावन।

 

दूर कहीं बिजली चमके 

कदम पिया के तब ठिठके 

आलिंगन में युगल बद्ध हो 

दूर हटो यूं कहते  हँस के।

 

मदराया हर आंगन है 

सुन विहंग के कलरव सुन।

 

रसवन्ती मेघों की फुहार 

करती यौवन है तार-तार 

माथे पर बूंदें पानी की 

जैसे हो मोती से शृंगार।

 

खुले केश हैं रूप मेघ के 

हो विचलित मन यूं देख के 

पावन सावन बीत न जाये 

हैं दिन दुष्कर प्रिय वियोग के 

 

होगा कब स्पर्श कर्ण को 

पायल की सुमधुर रुनझुन।

 

*ताला , जिला सतना म .प्र.








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