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मौत  का  है  पयाम  तम्बाकू




*हमीद कानपुरी


मौत  का  है  पयाम  तम्बाकू।

खा रहे  जन  तमाम  तम्बाकू।

 

माल  सेहत  खराब  करती है,

हर बिगाड़े  निज़ाम  तम्बाकू।

 

मारती दस हज़ार ये  हर दिन,

इकहवादिस कानाम तम्बाकू।

 

ख़्वाबपहले हसीन दिखलाती,

फिर  बनाती  गुलाम तम्बाकू।

 

पीरहेलोग इसको हँसहँसकर,

मौत का  एक  जाम तम्बाकू।

 

फेफड़े  खोखले   हुये   जाते,

फिर भी पीते तमाम तम्बाकू।

 

सारे  माहिर  तबीब  कहते हैं,

आदमी  को   हराम  तम्बाकू।

 

फिर मुसलमान क्योंइसे खाते,

दीन  में  जब  हराम  तम्बाकू।

 

फिरभला खारहे हैं हिन्दू क्यों,

जब न खाते थे राम  तम्बाकू।

 

रोकता क्यों नहीं इसे सिस्टम,

हो  रही   बे लगाम   तम्बाकू।

 

हो  सके  तो  हमीद  दूर  रहो,

रोग  लाता  तमाम   तम्बाकू।

*अब्दुल हमीद इदरीसी

 


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