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मद्यपान के नुकसान



*डॉ. दिलीप धींग

 

भारत जैसे उष्णकटिबंधीय तथा आध्यात्मिक देश में युवाओं में नशे की बढ़ती प्रवृत्ति किसी महामारी से कम नहीं है। यौवन का जो स्वर्णिम समय व्यक्ति-निर्माण से विश्व-निर्माण की अद्भुत क्षमता रखता है, वह मद्यपान और नशे से शीघ्र नष्ट हो जाता है। मदिरापान से तन, मन और मस्तिष्क पर अत्यन्त विपरीत असर होता है और मानव की अन्तर्शक्ति क्षीण हो जाती है। युवावस्था ही क्या, नशा जीवन की हर अवस्था को अव्यवस्थित कर देता है। संसार के सभी धर्मशास्त्रों, महापुरुषों और विचारकों ने मद्यपान को हानिकारक बताया है।

 

जैनधर्म के अनुसार :

जैनाचार्यों ने जिन सात व्यसनों को छोड़ने की सलाह दी है, उनमें एक मदिरापान भी है। प्राकृत ग्रंथ दशवैकालिक सूत्र में मदिरापान का निषेध करते हुए कहा गया है कि वह लोलुपता, छल, कपट, झूठ, अपयश, अतृप्ति आदि दुर्गुणों को पैदा करने वाला और दोषों को बढ़ाने वाला है। अंतकृतदशा सूत्र के अनुसार शराब उच्छृंखलता पैदा करती है। शराब की वजह से स्वर्णपुरी विशेषण से युक्त सम्पन्न द्वारिका नगरी का भी विनाश हो गया था। मूलाचार में मद्य-मांस को महाविकृति कहा है तथा उन्हें काम, मद, हिंसा आदि का जनक बताया है। हेमचन्द्राचार्य के अनुसार शराब से विवेक, संयम, ज्ञान, सत्य, शौच, दया आदि गुण नष्ट हो जाते हैं। आचार्य हरिभद्र ने मद्यपान के निम्नांकित दुष्परिणाम बताये हैं-



  1. शरीर विविध रोगों का आश्रयस्थल होना व शरीर का विद्रूप होना,

  2. परिवार व समाज से तिरस्कार होना,

  3. समय पर कार्य करने की क्षमता का नहीं रहना,

  4. ज्ञानतन्तुओं का धुन्धला होना व स्मृति क्षीण होना,

  5. बल, बुद्धि, मन और वाणी पर विपरीत असर,

  6. सज्जनों से सम्पर्क नहीं होना और दुर्जनों से सम्पर्क बढ़ना,

  7. कुलहीनता व उच्चतम संस्कारों का क्षरण,

  8. धर्म, अर्थ और काम का नाश होना।



 

व्यक्ति के पतन के लिए इन/इतने सारे दुर्गुणों में से कुछ ही पर्याप्त हैं। ये ही दुर्गुण समाज और देश को भी शक्तिहीन और विपन्न बनाते हैं। संत तिरुवल्लुवर के अनुसार, ‘जिन लोगों में शराब की लत पड़ जाती है, उनसे सुन्दरी लज्जा अपना मुँह फेर लेती है अर्थात् वे निपट निर्लज्ज/बेहया हो जाते हैं।’ जैन दिवाकर मुनि चौथमलजी ने कहा था कि ‘जिन भले आदमियों को इहलोक और परलोक न बिगाड़ना हो, उन्हें मदिरापान से सदैव बहुत दूर ही रहना चाहिये। शराब सौभाग्य रूपी चन्द्रमा के लिए राहू के समान है। वह लक्ष्मी और सरस्वती नष्ट करने वाली है।’

 

सभी धर्मों द्वारा वर्ज्य :

मांसाहार और मद्यपान सहवर्ती बुराइयाँ हैं। अथर्ववेद में मांसभक्षण के साथ मद्यपान को भी बुरा बताया गया है। गीता में कहा गया है कि जितने मादक पदार्थ हैं वे तमाम तमोगुणी हैं, अतः विवेक को नष्ट करने वाले हैं। ऐसे पदार्थों में शराब सिरमौर है। दयानंद सरस्वती के अनुसार मदिरा मनुष्य को राक्षस बना देती है। बाइबिल में लिखा है- ‘शराबी का प्रभु के राज्य में प्रवेश निषिद्ध है।’ कुरान के अनुसार ‘ईमान वाले और ईमान को जानने वाले शराब को नापाक मानकर उसका त्याग करते हैं।’ चीनी सन्त लाओत्से के अनुसार ‘पहले आदमी शराब को पीता है और फिर बाद में शराब उसका खून पीती है।’ जापानी संत कागावा ने कहा कि ‘कटी हुई पतंग, झूमता हुआ शराबी, गिरता हुआ तारा और मझधार में फँसा जहाज कहाँ जाकर टकराएगा, कोई नहीं बता सकता?’ आध्यात्मिक उन्नति में मद्य बाधक तत्व है, इसलिए सभी धर्मों में मद्यपान का निषेध किया गया है।

 

विचारकों द्वारा निन्दनीय :

दुनियाभर के महापुरुषों और विचारकों ने शराब को निन्दनीय बताया है। जिन लोगों को मद्यपान का व्यसन लगा हुआ है, उनके शत्रु उनसे कभी नहीं डरते हैं। सुकरात ने कहा ‘प्रचुर रेशमी वस्त्र, शराब और व्याभिचार की सुविधाएँ उपलब्ध करवा देने से शीघ्र ही किसी भी कौम या मुल्क को हथियार उठाए बगैर खत्म किया जा सकता है।’ वाल्तेयर ने मांसाहार और मद्यपान को संयुक्त बुराई बताते हुए लिखा - ‘जो मनुष्य पशुओं के मृत शरीर का भक्षण करता है और खूब मद्यपान करता है, उसका रक्त दूषित हो जाता है और वह उसे पागल कर देता है।’ विश्व इतिहासकार टॉयन्बी का निष्कर्ष बहुत भयावह है - ‘अति प्रचीनकाल से अस्तित्व में आईं कुल इक्कीस संस्कृतियों में से उन्नीस संस्कृतियों के पतन का कारण शराब है।’ कश्मीरी कवयित्री लल्लादेवी के अनुसार ‘घर को पत्थरों से भले ही भर दो; लेकिन शराबी को घर में किसी भी स्थिति में मत रखो।’ शेक्सपीअर के अनुसार ‘शराब का जाम चेतना, बुद्धि, प्राण और सम्पदा को हरण करने वाले जहर की अपेक्षा कहीं अधिक भयंकर है।’ डॉ. विलियम के अनुसार - ‘उबलते शीशे के घोल और शराब में कोई अन्तर नहीं है, दोनों बराबर है।’ अमरीकी न्यायाधीश एडमंड डिलैंटी के अनुसार ‘नशाखोरी ने मुर्दों का शहर बसाने में; आग अकाल, महामारी और तलवार से भी अधिक बड़ी भूमिका निभायी है।’

 

बीमारियों का द्वार :

शराब से हृदय रोग, केंसर, अनिद्रा, अल्सर, मधुमेह, नपुंसकता, जोड़ों में दर्द, लकवा, हेपेटाइटिस, उन्माद, मिरगी, यकृत-विकृति, गुर्दों की कार्यशीलता में कमी आदि कई भयंकर रोग होते हैं। शराब स्वास्थ्य और सुख की भयंकर शत्रु है। पागलखानों के एक सर्वेक्षण के अनुसार प्रति दस पागलों में से छह व्यक्ति बेहद शराब पीने के कारण पागल हुए थे। चरक संहिता के अनुसार ‘शराब सभी कुकर्म कराने वाली है। वह देह का सर्वनाश करती है। शराबी पर कोई औषधि असर नहीं करती। जो बुद्धिमान व्यक्ति मद्यपान नहीं करते हैं, वे इससे होने वाली शारीरिक और मानसिक व्याधियों से मुक्त रहते हैं।’ गांधीवादी चिकित्सक डॉ. सुशीला नैयर के अनुसार ‘औषधिशास्त्र में अल्कोहल (शुद्ध मद्य) का कोई स्थान नहीं है।’ अमेरिका की मेडिकल एसोसिएशन के अनुसार भी अल्कोहल में चिकित्सा का कोई गुण नहीं है। शराब से व्यक्ति ही नहीं, समाज भी बीमार होता है।

 

गरीबी का कारण :

शराब से सरकारी खजाना भले ही भर जाए, जनता निर्धनता और बेरोजगारी के गर्त में चली जाती है। शराब की आय से एक ओर राजस्ववृद्धि होती है, दूसरी ओर शराबजनित सामाजिक, शारीरिक, नैतिक और सांस्कृतिक विकृतियों को दूर करने या उनसे जूझने पर सरकार को जो खर्च करना पड़ता है, वह आय की तुलना में कई गुना अधिक होता है। पुलिस और चिकित्सा पर भी अनाप-शनाप खर्च होता है। डॉ. नेमीचन्द जैन के अनुसार ‘शराब एक ऐसा अभिशाप है; जो व्यक्ति, कुटुम्ब, समाज, संस्कृति, नैतिकता, अर्थतंत्र और राष्ट्रीय अनुशासन को नष्ट और क्षतिग्रस्त करता है।’ काका कालेलकर ने कहा था - ‘शराब की प्याली में एक सम्पूर्ण परिवार की खाना खराबी समायी होती है।’ आचार्य हीराचन्द्र के शब्दों में ‘जिनके द्वारों पर हाथी-घोड़े बंधे रहते थे, ऐसे सैकड़ों लक्षाधिपतियों, अमीर-उमरावों, ठाकुर-सरदारों, राजा-महाराजाओं, दुर्गाधिपतियों को शराब जैसे व्यसन ने बर्बाद कर दिया।’ शराब सिद्धि और समृद्धि की राह में भयंकर अवरोध पैदा करती है।

 

तनावों की माँ :

कई लोग तनाव से मुक्ति पाने के लिए शराब का सेवन करने लगते हैं। लेकिन मद्य से तनाव कम होने की बजाय स्थायी रूप से बढ़ जाते हैं। मद्यपान से स्नायु तंत्र, बौद्धिक क्षमता, और विचार शक्ति क्षीण हो जाती है। फलस्वरूप मनुष्य शारीरिक, बौद्धिक और मानसिक रूप से कमजोर पड़ने लगता है। हम एक उदाहरण लें। दूध से पात्र आधा भरा है। पात्र को अग्नि पर रखने से दूध उफनता है। लगता है पूरा भर गया। जब अग्नि पर से उतारा जाता है तो दूध पहले से कम हो जाता है। यही होता है नशे में। लगता है कि शक्ति आ गई, किन्तु नशा उतरने के बाद पता चलता है कि अपार शक्ति का व्यर्थ ही क्षय हो चुका है। इस प्रकार धीरे धीरे व्यक्ति अवसाद, कुण्ठा, थकान, चिन्ता और तनाव से घिरता चला जाता है।

 

अपराधों की जननी :

शराब मर्यादा, संयम, विवेक, शिष्टाचार, अनुशासन जैसे मानवोचित गुणों को नष्ट करके अराजकता को जन्म देती है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था, ‘मैं मद्यपान को चोरी, यहाँ तक कि वेश्यावृत्ति से भी अधिक निन्दनीय मानता हूँ; क्योंकि यह उक्त दोनों बुराइयों की जननी है। यदि मुझे एक घण्टे के लिए समूचे भारत का अधिनायक बना दिया जाए तो मैं पहला काम यह करूँगा कि शराब की तमाम दुकानों को बिना मुआवजा दिये बन्द करा दूँ।’ व्याभिचार, महिलाओं पर अत्याचार, सड़क दुर्घटनाएँ, पारिवारिक कलह आदि अनेक समस्याओं का कारण मद्यपान और नशा है। न्यायाधीश टेकचन्द के अनुसार ‘शराब नैतिक, आत्मिक, आर्थिक, सामाजिक, सामरिक एवं सुरक्षा द्वारों को खुला छोड़ देती है।’ कई सड़क-दुर्घटनाओं में शराब भी कारण बनती है। एक अनुमान के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष 80000 से अधिक व्यक्ति सड़क-दुर्घटनाओं में काल के ग्रास बन जाते हैं तथा 12 लाख से अधिक घायल हो जाते हैं। इन सड़क-दुर्घटनाओं की वजह से देश को 55000 करोड़ रुपयों की आर्थिक हानि उठानी पड़ती है। अखबारों में आये दिन जहरीली शराब से मौतों की खबरें आती रहती हैं। मार्क ट्वैन ने लिखा - ‘दुनिया की तमाम सेनाओं ने मिलकर जितने आदमी और जितनी सम्पत्ति नष्ट नहीं की है, उससे कई गुना शराब की लत ने की है।’

 

नशाखोरी के कारण

स्पष्ट है कि नशा विष से भी अधिक अनिष्टकारी है। नशा हर देश और समाज के लिए हानिकारक है। इस कुटेव के लिए निम्न व्यक्ति और घटक दोषी हैं -

     वे माता-पिता जो अपनी सन्तान को जीवन-निर्माणकारी सुसंस्कार नहीं देते।

     वे गुरु/अध्यापक जो अपने शिष्यों/विद्यार्थियों को पाठ्यक्रमेत्तर सद्शिक्षाएँ नहीं देते।

     स्कूल-कॉलेजों की बिगड़ैल मित्र-मण्डली तथा अन्य कुमित्र।

     सिनेमा, मीडिया और विज्ञापनों के नशे को प्रोत्साहित करने वाले दृश्य।

     वे समाज जिनमें मदिरा को किसी-न-किसी रूप में सामाजिक मान्यता प्राप्त है।

     वे ख्यातिप्राप्त और धनाढ्य लोग जो नशे से परहेज नहीं करते और युवा मन को दुष्प्रेरित करते हैं।

     नशे को अंजाम देकर किये जाने वाले व्यावसायिक सौदे।

     पारिवारिक कलह, बेरोजगारी या किसी असफलता से उपजी हताशा।

 

शराब की भाँति तम्बाकू, भांग, गांजा, अफीम, चरस, ताड़ी, हैरोइन, ब्राउन सुगर, कोकीन आदि अन्य नशीले पदार्थ भी मानव के सुख-सौभाग्य को घटाते हैं। नशे को लेकर समाज और युवाओं में फैली भ्रान्तियों का निराकरण अत्यावश्यक है। युवाओं को किसी भी प्रकार का कोई भी कारण या निमित्त उपस्थित होने पर भी नशे की ओर कभी भी प्रवृत्ति नहीं होना चाहिये। यदि व्यक्ति सुसंस्कारित, उच्च आचरण और दृढ़ मनोबल वाला हो तो किसी भी परिस्थिति में वह नहीं भटकेगा। किसी भी समाज या राष्ट्र की सर्वांगीण उन्नति के लिए उसके यौवन को बचाना अत्यावश्यक है। यह जानकर कि ‘शराब खराब है’ और ‘नशा नाश का द्वार है’, मद्यपान का परित्याग कर देना चाहिये। जिन समाजों में मद्य का निषेध हैं, वे समाज उन्नत, सुखी और संतुष्ट हैं।

 

*डॉ. दिलीप धींग,साहुकारपेट,चेन्नई

(लेखक अंतरराष्ट्रीय प्राकृत अध्ययन व शोध केन्द्र के निदेशक है)


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