भोपाल। फागुन के दिन बौराने लगे फागुन के, दवे पाँव आकर सिरहाने हवा लगी बांसुरी बजाकर। जैसे ही वरिष्ठ गीतकार डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र ने यह गीत पंक्तियाँ पढ़ी, राजधानी का श्रोताओं से भरा दुष्यंत कुमार स्मारक पाण्डुलिपि सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा, अवसर था, मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी संस्कृति परिषद द्वारा आयोजित निरंतर सृजन संवाद की श्रँखला में बहो गीत तुम गंगा से का।
आयोजन में सर्वप्रथम कार्यक्रम के अध्यक्ष वरिष्ठ गीतकार यतीन्द्रनाथ राही, एवं मुख्य अतिथि डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र, सारस्वत अतिथि डॉ. प्रगति गुप्ता ने मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्ववलित किया, ततपश्चात् अतिथियों का पुष्प गुच्छ भेंटकर अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे ने स्वागत किया। सुपरिचित रचनाकार घनश्याम मैथिल अमृत के सुमधुर संचालन में गीत गोष्ठी आरम्भ हुई जिसमें शहर के चुने हुए गीतकारों ने अपने सरस गीतों से आयोजन को यादगार बना दिया।
वरिष्ठ कवि नरेंद्र दीपक की पंक्तियाँ थी -युगों युगों से से प्रेम की चली आ रही रीत। वरिष्ठ गीतकार यतीन्द्रनाथ राही ने कहा -गीत संस्कृति का सृजन है राग है अनुराग है। कान्ति शुक्ला ने अपना गीत यूँ पढ़ा -डालियों पर झूम रही मंजरियां। वरिष्ठ गीतकार ऋषि श्रँगारी की सुमधुर पंक्तियाँ थीं -तुम्हारे गाँव से होकर गुजरना चाहता हूं। सुपरिचित रचनाकार दिनेश प्रभात की पंक्तियाँ थीं -लहर लहर लहराओं भू पर गीत तुम बहो तुम गंगा से। चर्चित नवगीतकार मनोज जैन मधुर ने पढ़ा -सुख के दिन छोटे छोटे से दुःख के बड़े बड़े। गीत के सुपरिचित हस्ताक्षर धर्मेन्द्र सिंह सोलंकी ने पढ़ा -अश्रु क्या मेरे तुझको नहीं भिगाते हैं। वरिष्ठ गीतकार ममता वाजपेई की पंक्तियाँ थीं -खुशियों का अहसास न हो तो क्या लिखें। डॉ. प्रार्थना पंडित के गीत की पंक्तियाँ थीं -पीड़ा का आँखों में माँ मुझको अभय का दान दे कोई। इसके साथ ही डॉ रामवलभ आचार्य, अशोक निर्मल अशोक व्यग्र, पुरुसोत्तम तिवारी, सीमा शर्मा, मधु शुक्ला सहित नगर के तीन पीड़ियों के 35 गीतकारों ने अपने उत्कृष्ट गीतों से इस आयोजन का यादगार बना दिया।
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