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एक दूसरे को समझने का आभाव ही मानसिक तनाव को जन्म देता है -डॉ प्रणव भारती


उज्जैन। बच्चे हो, युवा हो या बुजुर्ग हो, प्रत्येक पीढ़ी तनाव से गुजर रही है। जीवन से प्रेम तत्व का लोप होता जा रहा है। इस संघर्षपूर्ण जीवन में हर कोई दबाव में है, किंतु हम दूसरों की परिस्थिति समझने का प्रयास ही नहीं करते। ऐसी अवस्था वैचारिक मतभेद को जन्म देती है और यही से मानसिक तनाव आरंभ होता है। वैचारिक मतभेद के कारण ही लगातार परिवार टूटते जा रहे हैं। 

बच्चे स्वयं में सीमित है और उनके अभिभावक उनकी अपनी समस्याओं में सीमित है। परिवार टूटने के कारण ही अपनी बातों को साझा करने की स्थितियां नहीं बची है। यही परिस्थितियां मानसिक संत्रास को लगातार बढ़ा रही है। चुनौतियां हमारे जीवन का अभिन्न अंग है। समाज में चुनौतियां पहले भी थी और वर्तमान में भी है, किंतु आज उनसे जूझने का दृष्टिकोण सकारात्मक नहीं रहा। धैर्य, संयम जैसे गुण अब दिखाई नहीं देते। ऐसी अवस्था तनाव का कारक बन जाती है। उक्त विचार अहमदाबाद की प्रसिद्ध कहानीकार एवं उपन्यासकार माननीय डॉ. प्रणव भारती ने भारतीय ज्ञानपीठ में आयोजित कर्मयोगी स्व.श्री कृष्णमंगल सिंह कुलश्रेष्ठ की प्रेरणा और पद्मभूषण डॉ. शिवमंगल सिंह 'सुमन' की स्मृति में आयोजित अखिल भारतीय सद्भावना व्याख्यानमाला के छठवें दिवस पर प्रमुख वक्ता के रूप में व्यक्त किये।

"मानसिक संत्रास की परिधि में पीढ़ियाँ " विषय पर अपनी बात रखते हुए डॉ. प्रणव भारती ने कहा कि आरंभ काल में वेदों पर कार्य करने वाली और वेदों की ऋचाओं को बनाने वाली ऋषिकाओं के जीवन में भी संघर्ष रहा, किंतु उन्होंने संघर्ष का सामना सकारात्मकता के साथ किया। उन्होंने तनाव को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया, क्योंकि उनमें वैदिक संस्कारों का रोपण था। आज भी बच्चों में, युवाओं में संस्कारों का रोपण करके तनाव को दूर किया जा सकता है। महिलाओं की भूमिका बहुत अधिक बढ़ जाती है। वह शिक्षित होगी तो दूसरों को संस्कारित कर पाएगी। ऐसा करते हुए वह न सिर्फ स्वयं बल्कि परिवार को भी तनाव मुक्त रख पाएंगी। लगातार सीखने रहने का और सक्रिय रहने का भाव सभी में होना चाहिए।सीखने की प्रवृत्ति इतनी सतत होना चाहिए कि सीख जहां से भी मिल रही है चाहे वह अपने से छोटे ही क्यों ना हो, हमें लेते रहना चाहिए, किंतु होता यह है कि अपने छोटों से सीख लेने में हमारा अहंकार हावी हो जाता है। कई बार हम अपनों से छोटे लोगों का असम्मान कर देते हैं। यह भी तनाव का बहुत बड़ा कारण है। एक दूसरे से भावनाओं का आदान-प्रदान और विचारों को साझा करने के मंच अधिक से अधिक बढ़ाना होंगे। समूहों में, स्कूलों में, संस्थानों में चर्चाओं करने के मंच उपलब्ध होना चाहिए, तभी तनाव को दूर करके सकारात्मक जीवन जिया जा सकता है।

समारोह की अध्यक्षता करते हुए प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय, नागदा क्षेत्र प्रभारी ब्रह्माकुमारी पूनम बहन ने कहा कि तनाव कोई रोग नहीं है, बल्कि तनाव एक प्रकार का दबाव है। जो भी इस दबाव को सकारात्मक ले लेता है वह कोई कविता बना लेता है या लेख लिख लेता है। तात्पर्य यह है कि दबाव को सकारात्मक लेने से वह किसी सृजन को जन्म देता है, किंतु दबाव को नकारात्मक रूप में लेने से वह तनाव का भागीदार होता है। 

तनाव को दूर करने के लिए हमें परिस्थिति को स्वीकार करते आना चाहिए। इसके अतिरिक्त हमें धैर्यतापूर्वक सुनने का गुण भी अपनाना होगा। होता यह है कि हम दूसरों की बातों को सुनने की अपेक्षा स्वयं की बातें कहना अधिक पसंद करते हैं। जबकि दूसरों को सुनने से ही उन्हें समझने का अवसर मिलता है। होना यह चाहिए कि हर परिस्थिति को चुनौती के रूप में स्वीकार करें, किंतु होता यह है कि हम संबंधित लोगों को ही चुनौती देना शुरू कर देते हैं। उनसे मतभेद करना शुरू कर देते हैं और चुनौती की तरफ हमारा ध्यान ही नहीं जाता है। हमें इसका आकलन करते आना चाहिए कि हमारे नियंत्रण में क्या है ? वास्तव में जो नियंत्रण से बाहर है हम उसे पाने में अधिक तनावग्रस्त हो जाते हैं। जीवन में भावनात्मक संतुलन का होना बहुत आवश्यक है। कुछ लोग होते हैं जो शिकायत मोड पर रहते हैं और कुछ होते हैं जो समाधान मोड पर रहते हैं। हमें हमेशा समाधान मोड पर ही रहना चाहिए। हमारे जीवन में कई प्रकार की रुचियां होगी। हमें उन रुचियां पर ध्यान देना होगा, ताकि जीवन और अधिक सुंदर और सफल बनेगा।

कार्यक्रम के आरंभ में संस्थान की शिक्षिकाओं द्वारा सद्भावनापूर्ण गीत की प्रस्तुति दी गई। व्याख्यानमाला को उज्जैन के पहले कम्युनिटी रेडियो दस्तक 90.8 एफएम पर भी सुना जा रहा है। व्याख्यानमाला को सुनने के लिए भारतीय ज्ञानपीठ के सद्भावना सभागृह में एडवोकेट श्री हरदयाल सिंह ठाकुर, श्रीमती मनोज द्विवेदी, श्री अतुल शर्मा जी, श्री प्रदीप जोशी, श्री एम् एस लोहिया, श्री देवराज सिंह डागोर, डॉ पिलकेंद्र अरोरा, डॉ शैलेंद्र पाराशर, श्री खुशाल सिंह वाधवा सहित बड़ी संख्या में बौद्धिकजन और पत्रकारगण उपस्थित थे। संचालन राष्ट्र भारती विद्यालय की प्राचार्य श्रीमती मयूरी वैरागी ने किया।

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