फिर कभी बुरा न करें (ग़ज़ल) -हमीद कानपुरी
हो न मुमकिन अगर वफ़ा न करें।
भूल कर भी मगर दगा न करें।
चौंकना मत मियाँ ज़रा सा भी,
बे वफ़ा आज गर वफ़ा न करे।
कर सकें गर नहीं वफ़ा दारी,
जान कर फिर कभी बुरा न करें।
बद दुआ भी नहीं करें हरगिज़,
हक़ में मेरे अगर दुआ न करें।
किसतरह मर्ज़ ठीक होगा फिर,
मर्ज़ की आप गर दवा न करें।
-हमीद कानपुरी, कानपुर
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