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याद तुम्हारी आई है (गीत) -रश्मि 'लहर'


प्रिय!
बगिया तुम बिन सूनी है
कली-कली सकुचाई हैं ।
मुँह ढाॅंपें बैठी है कोयल,
याद तुम्हारी आई है ।

पायल की रुनझुन-रुनझुन
आंगन ने है सुनी नहीं
कल्पनाओं ने सपनों की
झिलमिल सी चादर बुनी नहीं।

जुगनू संग में ले आई है
मावस ने अगन बढ़ाई है ।

लाल महावर सधे कदम की
करे प्रतीक्षा देहरी है ।
स्मित अधरों से रूठी है
हिचकी लिए दोपहरी है ।

संध्या भरे कदम से पहुँची
स्मृतियाँ संग लाई है ।

प्राण प्रिये को छोड़ के कैसे
दिवस तुम्हारे बीते हैं
गुंजित करते थे कुटिया जो
खग भी मुझसे रूठे हैं ।

चेहरा भीगा है शाखों का
तुलसी भी कुम्हलायी है ।

-रश्मि 'लहर', लखनऊ

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