हे पद्मिनी ! जीवन के रंग से आँगन में अपने अल्पना सजाई है मैंने तुलसी चौबारे पर जलता दीप बाट जोहता आपकी वर्तिका में इसकी मुस्कानों का अपने घृत समा जाना माँ ! घर मेरे भी आ जाना ।
हे पद्मगंधिनी ! क्यारी में लगे हैं गुलाब, मोगरा, चम्पा, चमेली इनमें तनिक महक अपनी बिखरा जाना । माँ ! घर मेरे भी आ जाना ।
हे पद्माक्ष्या ! परेंडे पर मटके के पास जलता दीप पुरखों के नाम मिले वरदान यह आसीस बरसाना रसोई में पकते भोजन में मिर्च मसालों संग डलता रहे ममत्व, अपनापन बने प्रसाद भोजन, अमृत बरसा जाना माँ ! घर मेरे भी आ जाना ।
हे पद्मप्रिया ! एक दिया परदेस गये पति के नाम सजाया है देहरी पर प्राण दान दे चूनर की मेरे लाज रखना बैठक बड़े –बूढों से रहे आबाद मान- सम्मान, सौहार्दय के पुष्प खिला जाना माँ ! घर मेरे भी आ जाना ।
हे पद्मनाभप्रिया ! रहे हाथ आपका शीश पर हमारे चलता रहे व्यापार अन्न -धन -जीवन का लहराते रहे खेत फसलों से चहकते रहे दालान बच्चों की मधुर मुस्कानों से घटने न पाए दीपक की लौ माँ जीवन की अमावस को पूनम में बदल जाना माँ ! घर मेरे भी आ जाना ।
हे पद्मोद्भ्वा ! एक दीप पायगे में बंधी दुहाती गाय के नाम एक दीप चुग्गा चुगने आती चिड़िया के नाम दीप एक द्वार खड़े स्वान के नाम सभी की सांसे रहें सुरक्षित हर जीव के हित मेरी मंगल कामना माँ ! घर मेरे भी आ जाना ।
हे पद्मालया ! एक दिया गाँव से शहर की ओर आती-जाती पगडंडी के नाम एक दिया चौपाल पर लगे उस बरगद के नाम गाँव भर को करती तृप्त उस नदी के नाम एक दीप जलाया है । एक दीप शहरों के नाम पछुआ हवाओं से मेरे देश को बचाना माँ ! घर मेरे भी आ जाना ।
हे पद्ममालाधरा ! देश में मेरे मंगल कलश छलकते रहे नेह के बादल सदा बरसते रहें मन के दीप में होंसले की इन वर्तिकाओं का कभी घृत न रीते हे पद्मसुन्दरी ! वचन अपना निभाना माँ ! घर मेरे भी आ जाना ।
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