रास रंग में मगन हो गया,
चांद तो बद चलन हो गया।
रात यादों ने हांका किया,
दर्द और सघन हो गया।
सरे राह मिल गए वो,
झुकी पलकें, नमन हो गया।
सांसे तो ले ली मैने मगर,
आत्मा पर वज़न हो गया।
-कमलेश कंवल, उज्जैन
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