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दीपक और पतंगा (कविता) -निरंजना जैन


दीपक जलता है
रोशनी पसरती है
अँधेरा छँटता है
उसकी
झिलमिलाती लौं को चूमने के लिए
पतंगा आता है
और
अपने पंख जलाकर मर जाता है

दीप
दूसरों के लिए जलता है
उसके लिए श्रृद्धा से सिर झुकते हैं
पतंगा
ख़ुद के लिए जलता है
उसके लिए
आवारा/पागल/दीवाना जैसे
हिक़ारत भरे शब्द मिलते हैं

अपने लिए
और
दूसरों के लिए मिटने में
बस
यही तो फ़र्क होता है।

-निरंजना जैन, सागर

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