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रिश्तों की ऊष्मा से दमकता करवा चौथ -चेतन चौहान

करवा चौथ पर विशेष-

तुम्हारा सुहाग बना रहे। अखण्ड सौभाग्यवती रहो...आज भी यही वरदान हर परिवार के बुजुर्ग विवाहिताओं को देते हैं। असल में हमारे समाज में विवाहित महिला अपने से अधिक अपने पति के कुशलक्षेम को लेकर अधिक व्याकुल रहती है और हमारे यहां प्रचलित विभिन्न व्रत उपवास भी इसी सोच को परिलक्षित करते हैं। पति की मंगलकामना के लिए किए जाने वाले व्रतों में करवा चौथ का व्रत विशेष है।

पति की लम्बी उम्र की कामना के लिए इस व्रत में महिलाएं दिनभर निर्जल उपवास रखती हैं। इस दिन सुहागिनें रंग-बिरंगे कपड़े पहन कर सोलह श्रृंगार से खुद को सजाती हैं। घर में खुशहाली और सौभाग्य प्राप्ति के लिए हाथों पर मेहंदी लगाती हैं। शाम को चंद्रमा उदय होने के बाद विवाहित स्त्रियां विधि- विधान से पूजा-अर्चना करती हैं और पति के हाथों से ही जल ग्रहण कर अपना उपवास तोड़ती हैं।

करवा चौथ अब केवल लोक परम्परा नहीं रह गई है। पौराणिकता के साथ-- साथ इसमें आधुनिकता का प्रवेश भी हो चुका है और अब यह त्योहार भावनाओं पर केन्द्रित हो गया है। आज न केवल पत्नी बल्कि पति भी अपनी पत्नी के लिए करवा चौथ का व्रत करते हैं। पति का व्रत रखना परंपरा का विस्तार है। इस पर्व को अब सफल और खुशहाल दाम्पत्य की कामना के लिए किया जा रहा है।

हमारे समाज की यही खासियत है कि हम परंपराओं में नवीनता का समावेश लगातार करते रहते हैं। कभी करवा चौथ पत्नी के पति के प्रति समर्पण का प्रतीक हुआ करता था, लेकिन आज यह पति-पत्नी के बीच के सामंजस्य और रिश्ते की ऊष्मा से दमक और महक रहा है। आधुनिक होते दौर में हमने अपनी परंपरा तो नहीं छोड़ी है, अब इसमें ज्यादा संवेदनशीलता, समर्पण और प्रेम की अभिव्यक्ति दिखाई देती हैं। इस पर्व में आज की युवा पीढ़ी ने नए रंग भर दिए हैं, जिसमें आज भी परम्पराएं कायम हैं। 

करवा चौथ का व्रत शुरू होता है सुबह तारों की छाव में सास के हाथ की सरगी खाने से, जो कि महिलाओं के धैर्य और प्रेम की परीक्षा के साथ चन्द्रोदय पर पूरा होता है। सरगी में फेनी, केला, दूध, मिठाई के साथ सास का प्यार भरा आशीर्वाद होता है। इसके बाद महिलाएं सज-धज कर व्रत की कथा सुनती हैं, सास को बायना और करवा भेंट कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। पूजा में रोली-मोली, बिंदी, सिंदूर, अक्षत, चावल सहित सुहाग की चीजें रखी जाती हैं। करवा चौथ का व्रत हमें प्यार की सीख देने के साथ-साथ भूल करने से भी बचने का संदेश देता है।

करवाचौथ की शाम सुहागन छलनी से चांद देखकर व्रत खोलती हैं। इसलिए अमीर हो या गरीब सभी व्रत रखने वाली महिलाएं इस अवसर पर नई छलनी खरीदती हैं। व्रत की शाम छलनी की पूजा करके चांद को देखते हुए प्रार्थना करती हैं कि उनका सौभाग्य और सुहाग सलामत रहे । करवाचौथ में छलनी के महत्व के पीछे एक पैराणिक कथा है। कथा के अनुसार करवा चौथ के व्रत के दौरान अपनी बहन की परेशानी से व्याकुल होकर भाईयों ने छलनी में दीपक जला कर बहन को चांद दिखा कर उसका उपवास तुड़वा दिया। जिसके कारण बहन के पति की मृत्यु हो गई। इस कथा को ध्यान में रखते हुए महिलाएं छलनी में दीपक रखकर अपना व्रत पूरा करती हैं। जो यह सिखाती है कि कोई छल से उनका व्रत तोड़ न दे । साथ ही करवा चौथ में छलनी लेकर चांद को देखना यह भी सिखाता है कि पतिव्रत का पालन करते हुए किसी प्रकार का छल उसे प्रतिव्रत से डिगा न सके।
-चेतन चौहान, जोधपुर

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