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क्‍यों, रोना चाहिए (गीतिका)


(छंद- गगनांगना)
रोगी कोई हो निदान बस , होना चाहिए ।
असमय ना कोई भी जीवन, खोना चाहिए ।।

प्रारब्‍धों की बातें होती, बेमानी सभी,
धरे हाथ पर हाथ नहीं बस, सोना चाहिए ।।

रोगी की प्रतिरोधक क्षमता, बढ़ना लाजमी,
व्‍यर्थ बने तन बोझ कभी ना, ढोना चाहिए।।

सदा हौसलों के बलबूते, देना मात है,
नहीं अंधविश्‍वास न जादू-टोना चाहिए ।।

कल्‍प योग पर्यूषण व्रत से, तन मन शुद्ध हों,
’आकुल’ सब कुछ संभव है क्‍यों, रोना चाहिए ।।

-गोपाल कृष्ण भट्ट 'आकुल', कोटा


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