Subscribe Us

दीपावली-अंतरमन को जगाने व उजास से भरने का महापर्व

दीपावली विशेष-

दीपावली हमारी संस्कृति का एक आलोकित प्रवाहमान पर्व है. अपने घर-आंगन, परिवेश को साफ-स्वच्छ कर दीप जलाने की एक प्रकाशित परंपरा है। दीप जलाने से तात्पर्य अपने जीवन को आत्मज्ञान के प्रकाश से आलोकित करना है। सचमुच अनूठी है हमारी भारतीय संस्कृति।

अंधेरे से उजाले के अविराम संघर्ष अर्थात विषमताओं पर समता की जीत का प्रेरणा पर्व दीपावली हमारी परंपरा की गरिमामय उपलब्धि है। दीपोत्सव मात्र रोशनी का पर्व या औपचारिक उत्सव न होकर हम सबके अंतरमन को जगाने व उजास से भरने का महापर्व है।

इस दीपपर्व की एक और विशेषता है कि यह शक्ति, सौंदर्य, समृद्धि और पुरुषार्थ के समन्वय का भी महोत्सव है। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ में अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ते जाने की जो कामना की गई है, इसके साथ यह संकल्प भी आवश्यक है कि प्रकाश प्राप्ति उपरांत हम उसे सहेज कर रखेंगे।

वर्तमान समय धन प्रधान है। धन सुख है, ताकत है. धन बहुत कुछ है लेकिन सब कुछ नहीं है। ज्योति पर्व पर इस संकल्प के प्रति हम गंभीर रहें कि धन परिश्रम व सही राह से आए, सच्चे प्रयोजन में व्यय हो तथा पौरुष के साथ उसकी सुरक्षा हो।

दीपावली के पावन पर्व पर हम अपने सभी निकृष्ट कार्यों का त्याग कर प्रकाश पर्व से प्रेरणा लें कि अपने श्रेष्ठ कार्यों से जग-जीवन को आलोकित करें। आज हमारे आस-पास सामाजिक विषमताओं व साम्प्रदायिक ताकतों का अंधकार गहराता जा रहा है। पिछले कुछ समय में हुई ऐसी दुर्घटनाओं और आतंकवादी गतिविधियों का बढ़ता दायरा हम सबके भविष्य के लिए अंधेरे का साम्राज्य बढ़ने जैसा है।

देखा जाय तो बाह्य चकाचौंध जितनी बढ़ी है, असल उजियारा धुंधला पड़ रहा है। भौतिक सुख-साधनों के विकास का क्षेत्रा जितना बढ़ा है दिल की दूरियां भी उतनी बढ़ी है। जात-पात, धर्म-सम्प्रदाय, अमीरी-गरीबी के मलिन कुंहासे में हमारे सनातन संस्कारों का उजास धूमिल पड़ रहा है।

दीपावली किसी एक दिन का प्रतिनिधित्व नहीं करती बल्कि हर दिन दिलों को उजाले से भरने का प्रेरणा पर्व है। हमें अंतर्मन में हमेशा ऐसी ज्योति प्रज्वलित रखना चाहिए जो उत्प्रेरित करे समाज के लिए कुछ करने को जिससे सबकी भलाई हो।

क्यों न हम सभी अपने भीतर ऐसा दीप जलाएं जो कुत्सित विचारों के उस अंधेरे को छांटे जो हमें निजी स्वार्थ के लिए मानवता से दूर करते हैं. ईर्ष्या द्वेष के उस तमस का अंत करें जो हमें कुंठित करते हैं। हृदय के तार झंकृत कर ऐसी तान छेड़ें जो समस्त विश्व को सनातन संस्कृति के मधुर संगीत में आबद्ध करे।

-उमेश कुमार साहू
(अदिति फीचर)

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ