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रेडियो का स्थान एक समय सर्वोच्च था


रेडियो पर बजते गीतों की कल्पना,राग,संगीत के साथ गायन की मधुरता कानों में मिश्री घोलती साथ ही साथ मन को प्रभावित भी करती है। गीतों का इतिहास भी काफी पुराना है। रागों के जरिए दीप का जलना, मेघ का बरसना आदि किवदंतियां प्रचलित रही है ,वही गीतों की राग ,संगीत के जरिए घराने भी बने है। गीतों का चलन तो आज भी बरक़रार है जिसके बिना फिल्में अधूरी सी लगती है। टी वी,सीडी ,मोबाइल आदि अधूरे ही है।

पहले गाँव की चौपाल पर कंधे पर रेडियो टांगे लोग घूमते थे। घरों में महत्वपूर्ण स्थान का दर्जा प्राप्त था। कुछ घरों में टेबल पर या घर के आलीए में कपड़ा बिछाकर उस पर रेडियों फिर रेडियों के ऊपर भी कपड़ा ढकते थे जिस पर कशीदाकारी भी रहती थी। बिनाका -सिबाका गीत माला के श्रोता लोग दीवाने थे। रेडियों पर फरमाइश गीतों की दीवानगी होती जिससे कई प्रेमी -प्रेमिकाओं के प्रेम के तार आपस में जुड़ जाते थे। वो गीतों में इतने भावुक हो जाते थे कि वे अपने आप को हीरो -हीरोइन समझने लगते थे।फिल्मो के शीर्षक भी रखे जाने लगे -गीत ,गीत गाता चल,गीत गाया पत्थरों ने आदि।

वाहन चलाते समय मोबाइल पर बात करने व् हेड फोन कानों में लगाकर गीत सुनने से भी दुर्घटनाओं की आशंका बनी रहती है । क्योंकि वाहन चालक का ध्यान मोबाइल सुनने में लगा रहता है। पीछे से हार्न देने वाले की सुनवाई भी नहीं होती । मोबाइल पर बातें व् गीत सुनने का शौक है तो तनिक रुक कर या घर जाकर भी तसल्ली सी गीत मोबाइल पर सुने जा सकते है और दुर्घटनाओं के आकड़ों में कमी करने में अपनी भूमिका अदा की जा सकती हैै ।दूर कही सुनसान माहौल में बजता गीत वाकई कानों में मधुर रस आज भी घोल जाता है। गीत अब मोबाइल के संग जेबों में जा घुसे ,गीतों में प्रतिस्पर्धा होने लगी । हर चैनल पर गायकों की प्रतियोगिता में अंक मिलने लगे।निर्णायकों की डॉट पढ़ने और समझाईश की टीप प्राप्त होने लगी। जिससे प्रतिभागियों के चेहरे पर उतार चढाव झलकने लगा। पृथ्वी पर देखा जाये तो गीतों को अमरता प्राप्त है। पृथ्वी पर कोई भी ऐसा देश नहीं है जहाँ गीतों का चलन न हो।वैज्ञानिकों ने गीतों को ब्रम्हांड में भी प्रेषित किया है ताकि बाहरी दुनिया के लोग इस संकेत को पकड़ सके । शादी -ब्याह में वाद्य यंत्रों के साथ गीत गाने का चलन बढ़ने लगा है। गीतों की पसंदगी व हिस्सेदारी में हर कोई आगे आया है। पहले के ज़माने में बच्चे -बूढ़े सभी अंतराक्षरी खेल कर अपने गायन कला का परिचय करवाने के साथ ही जीतने व् ज्यादा गीतों को याद रखने की कला को बखूबी जानते थे। गीतों में मधुरता जब ही प्राप्त होती जब बीमारियों की समस्याओं का त्वरित हल होता। रेडियो पर बजते गीत आज भी कितने गीत मन को छू जाते है। जो घर में बैठ कर इन गीतों को आप और हम आज जानते है।

-संजय वर्मा 'दॄष्टि', मनावर जिला -धार (म प्र)

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