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शुद्ध भाषा- बोली के अस्तित्व की दरकार


कुछ बोलियाँ ऐसी है,जिनके बोलने वाले कुछ लोग अक्सर बोली मे अपशब्दों का प्रयोग तकिया कलाम के रूप मे करते है। चाहे वे जानवरों के लिये या लोगों के लिये बोली गई हो। ये बोली मे समाये अपशब्द गुस्से के समय या बराबरी के लोगों या आपसी बैरभाव निकालते समय जाहिर करते है। वे इस पर जरा भी गौर नहीं करते कि बच्चों के प्रति इसका असर क्या होगा। बोली में स्वयं विकृति पैदा करके शुद्धता नहीं लायेगे तो बोली मे विकृति पैदा होकर वह विलुप्ता की और अपने आप चली जायेगी। ऐसे में बोली का सम्मान करने वालों का प्रतिशत बहुत कम रह जायेगा।

एक और कुछ ही लोग है,जो बोली के सम्मान के लिये आगे आये है। वे इस दिशा मे गीत ,कहानी, लघु कथा , हायकू ,दोहा ,कविता आदि के माध्यम से कार्यक्रम आयोजित कर एवं उनके द्वारा लिखित कृतियों का विमोचन कर प्रचार - प्रसार मे लगे हुये है। ऐसे लोगों कि संख्या बहुत कम है। जब तक बोली मे शुद्दता एवं सम्मान की समावेशता नहीं रहेगीं तब तक भाषाओं के आश्रय से स्वयं को दूर नहीं कर पायेगे तथा भाषाओँ का सही आधार भी मजबूत नहीं बनेगा ,क्योंकि कड़ियाँ एक दूसरे से जुडी हुई है। 

वर्तमान में शुद्ध भाषा के अस्तित्व को अंग्रेजी के मिश्रण से हम भुगत ही रहे है। हमें बड़ा गर्व महसूस होता है कि हम अंग्रेजी भाषा का समावेश अपनी मातृ भाषा मे करने लगे है? यह एक भटकाव है। शुद्ध बोली और भाषा लिखने ,बोलने,पढ़ने के प्रयोग का संकल्प ले ,ताकि भावी पीढ़ियों को भी आपके द्वारा बोली /भाषा कोयल की कूक सी बोलने पर मीठी लगे,साथ ही बच्चों ,बड़ों को भी साहित्य के आधार की सही समझ हो सके 

वर्तमान में इलेक्ट्रानिक युग में अंग्रेजी शब्दों को हिंदी में से निकालना यानि बड़ा ही दुष्कर कार्य है । और हिंदी व्याकरण और वर्तनी का भी बुरा हाल है । कोई कैसे भी लिखे ,कौन सुधार करना चाहता है । इस भाग दौड़ की दुनिया में बहुत कम लोग ही होंगे जो इस ओर ध्यान देते होंगे । जैसे कोई लिखता है कि "लड़की ससुराल में "सूखी" है सही तो ये है की लड़की ससुराल में "सुखी" है। ऐसे बहुत से उदाहरण मिल जाएंगे । विधार्थियों को अपनी सृजनात्मकता ,मौलिक चिंतन को विषयान्तर्गत रूप से हिंदी व्याकरण और वर्तनी में सुधार की और ध्यान देना होगा, ताकि निर्मित शब्दों का हिंदी में परिभाषित शब्द सही तरीके से व्यक्त कर सके, लिख सके। और हिंदी भाषा त्रुटिरहित, मिलावट रहित होकर अपनी गरिमा बनाये रख सके। हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु हर लेखनीय कार्य हिंदी में ही अनिवार्य करना होगा। ताकि हिंदी लिखने की शुद्धता बनाई जा सके । 

इनके अलावा हमें क्षेत्रीय बोलियों पर भी ध्यान देना होगा बोलियों के प्रति उदासीनता के चलते आने वाले वर्षो मे कई बोलियाँ विलुप्ति की कगार पर जा पहुचेगी। बोलियों की सरक्षण देने के जो भी प्रयास वर्तमान मे किये जा रहे है ,उनकी प्रगति धीमी है। कारण यह भी है की क्षेत्रीय लोग ही अपनी-अपनी बोलियों मे आपस मे बात करने से पहरेज करने लगे है। उन्हें शायद ऐसा लगता है की हमारा खड़ी बोली बोलने का स्तर इससे प्रभावित होगा। कई जगह लोक परिषद् भी शब्द कोष , व्याकरण और अलंकारों को बढ़ाने एवं सहेजने का प्रयत्न कर रही है। इन्ही प्रयासों से क्षेत्रीय बोलियों के विलुप्त होने का खतरा टल सकेगा। साथ ही नागरिकों की संस्कृति विशेष की पहचान भी बढ़ेगी। इनके अलावा बोलियों मे बदलाव रुकेगा और मूल शुद्धता बरक़रार रहेगी। बोलियों के द्धारा क्षेत्रीय बोलियों को बढ़ावा देने हेतु क्षेत्रीय बोल चाल को बढ़ाना होगा तभी क्षेत्रीय बोलियों को विलुप्त होने से बचाया जा सकेगा।

-संजय वर्मा 'दॄष्टि',मनावर (धार)

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