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अणुव्रत सप्ताह में डॉ. दिलीप धींग के उद्बोधन


चेन्नई। अणुव्रत समिति, चेन्नई के तत्वावधान में अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अंतर्गत 5 व 6 अक्टूबर को नशामुक्ति और अनुशासन दिवस मनाये गये। 5 को ट्रिप्लिकेन स्थित तेरापंथ सभा भवन में शासनश्री साध्वी शिवमाला आदि ठाणा की निश्रा में आयोजित कार्यक्रम में शसुन जैन महाविद्यालय में जैनविद्या विभाग के शोध-प्रमुख साहित्यकार डॉ. दिलीप धींग ने दारु पर राजस्थानी छंद सुनाकर कहा कि नशामुक्ति से गरीबी, बीमारी, अपराध, महिला अत्याचार, दुष्कर्म और सड़क हादसों में कमी लाई जा सकती है। लता परमार के प्रयत्न से लोगों ने साध्वीश्री से व्यसनमुक्ति के संकल्प लिये। अणुव्रतसेवी संपतराज चौरड़िया ने मुख्य अतिथि डॉ. धींग का परिचय दिया। विद्वान श्रावक गौतम सेठिया ने सम्मान किया। उन्होंने जानकारी दी कि 5 अक्टूबर को दैनिक जलते दीप (जयपुर/जोधपुर) एवं दक्षिण भारत राष्ट्रमत (चेन्नई/बेंगलुरु) में डॉ. दिलीप धींग का निबंध ‘अणुव्रत आंदोलन और नशामुक्ति’ प्रकाशित हुआ।
6 अक्टूबर को साहुकारपेट स्थित तेरापंथ भवन में साध्वी लावण्यश्री आदि ठाणा के सान्निध्य में अनुशासन दिवस मनाया गया। साध्वीश्री ने कहा कि डॉ. धींग साधारण दिखने वाले असाधारण व्यक्तित्व हैं। मुख्य वक्ता डॉ. धींग ने तेरापंथ को अनुशासन का पर्याय बताया और आचार्य तुलसी के लोकप्रिय नारे ‘निज पर शासन, फिर अनुशासन’ का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि अणुव्रत गीत में अणुव्रत की परिभाषा ही ‘अपने से अपना अनुशासन’ की गई है। डॉ. धींग ने कहा कि अनुशासन और आत्मानुशासन से शासन को सुशासन बनाया जा सकता है। उन्होंने अनुशासन के लिए व्यसनमुक्ति, विनय, संयम और मर्यादा की आवश्यकता पर बल दिया। स्वरूपचंद दांती ने डॉ. धींग की उपलब्धियाँ बताईं। अणुव्रत समिति के अध्यक्ष ललित आंचलिया व पदाधिकारियों ने डॉ. धींग का सम्मान किया। इस अवसर पर समाजसेवी प्यारेलाल पितलिया, उगमराज सांड, विमल चिप्पड़ सहित बड़ी संख्या में श्रावक श्राविकाओं की उपस्थिति रही।


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