Subscribe Us

अंधा युग है (कविता)


अंधा युग है यह प्यारे
यहां सभी कुछ अंधा है
किसी के हाथ में है बंदूक
और किसी का कंधा है।
एकदूजे पर घात लगाए
यहां शिकारी बैठे हैं
हाथ में है तलवार -तीर
करके तैयारी बैठे हैं
दूसरों का खून चूस कर
माल क़माना धंधा है
अंधा युग है यह प्यारे
यहां सभी कुछ अंधा है।
चीख, पुकार, कराह़ों को
यहां सुनते है कान नहीं
इंसानियत छोड़ बैठे सब
ईमान की कोई दुकान नहीं
जो ईमान बेचने निकला है
वो भूखा कोई बंदा है
अंधा युग है यह प्यारे
यहां सभी कुछ अंधा है।
लूटने वाले लूट रहे हैं
लाचार बहाते हैं आंसू
यह देखने वाले हंसते हैं
यह सीन बड़ा ही है धांसू
जिनको इज्ज़त है प्यारी
उनके लिए बस फंदा है
अंधा युग है यह प्यारे
यहां सभी कुछ अंधा है।
उन्माद छा रहा है इतना
हर कोई खून का है प्सासा
मरने मारने को तत्पर
नफ़रत का दौर है खासा
चिंगारी सुलगाने का यह
कैसा गोरखधंधा है
अंधा युग है यह प्यारे
यहां सभी कुछ अंधा है।

-डॉ रमेशचन्द्र, इंदौर (म.प्र.)

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ