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ज़िन्दगी शाम ले के आयी है


ज़िन्दगी शाम लेके आयी है
होश बे-होश है तन्हाई है

ये समां ख़ुश्क किये जाता है
बे-कदर यार है रुसवाई है

जानते हैं मिज़ाज दिलबर का
बा-खुदा आँख ये दरियाई है

चंद सिक्कों में खनक देखी तो
उसकी औकात नज़र आई है

भूल कर हम खुदा बना बैठे
हुस्न की आब गलिज़ाई है

देखना है शऊर को जी भर
जुल्फ़ के सामने पुरवाई है

देख 'कोमल' अजीब बस्ती को
चार बालिश्त की पैमाई है

-कीर्ति मेहता 'कोमल', इंदौर (म.प्र.)

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