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पदमा एकादशी व्रत


भारतीय संस्कृति में पर्वों और महत्वपूर्ण तिथियों में अनेक देवी देवताओं के पूजन और व्रत का विधान है। एकादशी तिथि को भगवान विष्णु जी की पूजा करने और व्रत रखने की मान्यता है। साल भर में 26 एकादशी तिथियां आती हैं। इसमें यह एकादशी है- पदमा। जलझूलनी, पाश्र्व परिवर्तनी तथा कर्म एकादशी भी इसे कहा गया है। भगवान विष्णु की पूजा करने और व्रत रखने से भक्तों के मनोरथ पूर्ण होते हैं। इस दिन दान करने का भी विधान है।

व्रत के दिन पवित्र आचरण करने का ध्यान रखा जाता है। जैसे अधिक समय मौन रहना, दूसरों का दिया भोजन ग्रहण न करना, निंदा से बचना, एक समय दूध फल का अल्प आहार, ईश्वर का चिंतन मनन व मंदिर में विग्रह दर्शन आदि।

व्रत रखने से चित्त की शुद्धि होती है।शारीरिक , मानसिक और आध्यात्मिक विकास होता है। व्रत तीन प्रकार का होता है- नित्य, नैमेत्तिक और काम्य। नित्य व्रत वह है जिसका अनुष्ठान स्वयं के लिए जरूरी हो, जैसे एकादशी व्रत। दूसरा, किसी कारण या अवसर पर यदि व्रत किया जाए तो वह नैमेत्तिक व्रत कहलाता है जैसे चंद्रायण व्रत। किसी कामना को लेकर यदि व्रत किया जाए तो उसे काम्य व्रत कहेंगे।

उपवास का शाब्दिक अर्थ है- 'उप समीपे वास:।' अपने इष्ट देव के समीप में रहना। आशय यह है कि इष्ट देव की कृपा पाने के लिए हम उपवास के दिन उनका निरंतर चिंतन और स्मरण करते हैं। उनके विग्रह का दर्शन करते हैं। इस तरह उपवास के अनुष्ठान से हमारी आत्म शुद्धि होती है और पुण्य मिलता है।
-श्रीराम माहेश्वरी, भोपाल
मो . 9926372750

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