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ज़िंदगी का अख़बार


अब तो पढ़ा न जाए -
ज़िंदगी का अख़बार ।

अक्षर वो धुंधला गए -
इसके हर पृष्ठ के ।
आंसू टपकने से पहले -
जो स्पष्ट थे ।

अब तो हुआ न जाए -
पार नद का मंझधार ।

ख़बर कोई भी न ऐसी -
जिसे पढ़ा जाए ।
चित्र न कोई भी ऐसा -
जिसे मढ़ा जाए ।

अब तो देखा न जाए -
रक्त - रंजित भिनसार ।

धूप सेंकता लाॅन भी -
अब सूना पड़ा है ।
सहर भी अंधियारे का -
देहरी चढ़ा है ।

अब तो जिया न जाए -
अपाहिज़ - सा इतवार ।

मौसम अब कोई भी -
रहा नहीं जीने का ।
ज़हर भी कोई शेष -
रहा नहीं पीने को ।

अब तो लिया न जाए -
नया कोई अवतार ।

-अशोक आनन ,मक्सी जिला - शाजापुर ( म.प्र.)

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