भोपाल। "कहानी संवेदनाओं का प्रतिफल है । जब कोई भी दृश्य या अनुभव लेखक को बैचेन कर देता है तब कहानी उसके मानस में उतरती है । कहानी के माध्यम से कहानीकार पाठक से संवाद करती है" यह कहना था सुप्रसिद्ध कहानीकार डाॅ. सूर्य कांत नागर काा जो मध्यप्रदेश लेखक संघ की प्रादेशिक कहानी गोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे । आपने कहा कि लघुकथा जितनी छोटी लगती है उतनी ही कठिन विधा है । वर्तमान में लघुकथाओं में एक ही विषय की पुनरावृत्ति देखी जा रही है किन्तु दृ्ष्टि और शिल्प में भिन्नता होना चाहिए । आपने अपनी कहानी "कायर" का पाठ भी किया ।
गोष्ठी के सारस्वत अतिथि वरिष्ठ कहानीकार श्री मुकेश वर्मा ने कहा कि कहानी में पठनीयता और दृश्यात्मकता होनी चाहिए। कहानी के कथ्य में शब्दों की भूमिका महत्वपूर्ण है जो लेखक की अनुभूतियों को पाठक तक पहुँचाती है । आपने कहा कि आज के देश और समाज के यथार्थ के विश्लेषण करते हुए भी आदर्शवाद को परे नहीं रखा जा सकता। आपने अपनी कहानी "दिलों की आवाज ऊपर उठती हुई" के रोचक विवरण से लुभाया । डाॅ. राम वल्लभ आचार्य ने अपनी कहानी "बँटवारा" द्वारा भाइयों में आपसी समझ की आवश्यकता प्रतिपादित की । प्रभुदयाल मिश्र ने अपने वैदिक उपन्यास "सूर्या" से अहिल्या अंश का पाठ किया ।
चर्चित कथाकार डाॅ. लता अग्रवाल ने अपनी कहानी "अम्मा होते बाबूजी" के माध्यम से कैंसर से उपजी पारिवारिक स्थितियों को रेखंकित किया। अशोक धमेनियाँ ने अपनी कहानी "अहिंसा परमो धर्मः" का वाचन किया । श्री सन्तोष सुपेकर ने लघुकथा "इस बार" तथा "उस रक्त स्नान के बाद" द्वारा जाति तथा धर्म के नाम पर भेदभाव एवं आतंकवाद की पीड़ा को व्यक्त किया । राम मूरत राही ने लघुकथा "अनोखा परिचय" और "मेरा तीर्थ" द्वारा साहित्यिक विसंगति पर कटाक्ष किया तथा गाँव को तीर्थ निरूपित किया ।
कर्नल डाॅ. गिरजेश सक्सेना ने कहानी फ़र्ज़ का कर्ज़" सुनाई । हेमन्त उपाध्याय ने अपनी लघुकथा"वृक्ष" के माध्यम से पर्यावरण रक्षण का संदेश दिया । मधुर कुलश्रेष्ठ ने अपनी कहानी "सुनहले संसार के बाद" का पाठ किया तथा ऊषा सक्सेना ने अपनी कहानी दरकती दीवारें ढहते खंडहर का वाचन किया । संत कुमार मालवीय ने लघुकथा "समय" एवं "हम आज़ाद हैं " तथा बिहारी लाल सोनी 'अनुज' ने लघुकथा "इलाज" और "नौकर का मुंडन" का पाठ किया ।
गोष्ठी का संचालन कहानीकार संतोष परिहार ने किया । आपने अपनी कहानी "हिस्सा हिस्सा बनी ज़िन्दगी" का वाचन किया । प्रारंभ में अतिथियों द्वारा माँ सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया तथा सुनील चतुर्वेदी ने अतिथियों का स्वागत किया । अंत में प्रभुदयाल मिश्र मे आभार प्रदर्शन किया ।
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