![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjH755uuiHktzusqRI9APunFISO3I4uPGlLD34psI7NiyOxhomPgdfegDJDbIMTRPRgew_I3hCxPeZhvtOfez_Cv7f53pRKEoJL394Jjg1F6dnzJglXdgNxybHDQUapCzlGX_n6-HTW0E4/s320/FB_IMG_1614573244817.jpg)
डॉ.रघुनाथ मिश्र 'सहज'
होली आई मचल गया मन।
इस होली में बहक गया मन।
जब गोरी मुस्काई दिल से,
फिर वापस से सँभल गया मन।
होली का क्या असर हुआ यह,
अब रूठों का बदल गया मन।
प्यार लुटाएंगे होली में,
अनुरागी यह टहल गया मन।
इस होली में देख एकता,
है दुश्मन का दहल गया मन।
मिलजुल गाए फाग मस्त जब,
तब प्रियतम का चहक गया मन।
आवो घोलें भंग स्नेह का,
आनंदित हो पिघल गया मन।
झाल - मजीरे चंग दिलों में,
बजे प्रीति से महक गया मन।
होली में जल गई बुराई,
असल खुशी से छलक गया मन।
धुलहंडी में रति-रस आए,
इसी ललक से गमक गया मन।
'सहज' दिलों में प्यार बसाओ,
विद्वेषों से सरक गया मन।
0 टिप्पणियाँ