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औरत तो औरत है


सुजाता भट्टाचार्य

औरत तो औरत है,
हर घर की वो जरूरत है,
अपनी सुबुद्धि से जो 
मकान को घर है बनाती।
जिसके बिना परिवार की 
सांसें अटक सी जाती।।
अपनी सुशिक्षा से वो 
संतान को उच्च शिक्षा दिलाती,
बिन मां के हर शिशु की 
दुनिया ही रूक सी जाती।।
औरत तो औरत है,
हर घर की जरूरत है जो

खिलखिलाहट से अपनी, 
घर में खुशियां है लाती,
हित में सबके सदा-सर्वदा 
अपना कदम जो बढ़ाती।
कर हर चुनौती का सामना, 
मुश्किल समय को दूर भगाती।
पहाड़ सरीखे काम को 
आत्मविश्वास से अपने, 
पूरा कर जाती।।
करने सामना शत्रुओं का,
वो पत्थर है बन जाती,
वक्त आने पर घर-बाहर को 
स्वयं अकेले चलाती,
परिवार को अपने 
आंच ना आने जो देती।
हर ठोकर सहकर भी 
वो दया,धैर्य, सहनशीलता का 
दामन न छोडती......
औरत तो औरत है,
हर घर की जरूरत है जो

छोटा-बड़ा, अपना-पराया 
किसी ‌में न भेद जो करती।
सुख-दुख में सबके,
अपनेपन से सबकी साथी वो बनती।।
हर क्षेत्र में अपनी प्रतिष्ठा,
आप ही गढ़ती,
असंभव जीवन के सपने,
दृढ़ता से संभव जो करती।
औरत तो औरत है,
हर घर की जरूरत है वो
इस जग की जरूरत है वो...........

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