
आशीष तिवारी निर्मल
दिल के ज़ख्म बड़े ही गहरे निकले
सबकी तरह तुम भी गूँगे बहरे निकले।
तुम ही तो थे गवाह मेरी बेगुनाही के
तुम्हारी ज़ुबाँ पे सौ-सौ पहरे निकले।
तुमपे किया निसार दिल-ओ-जाँ कभी
तुमने दिये जो घाव हमेशा हरे निकले।
इसीलिए ठहरा हुआ हूँ बेरहम दुनिया में
वालिदैन के कुछ ख्वाब सुनहरे निकले।
किरदार निभा रहे लोग यहाँ रंगमंच पे
तन्हाई में आंख से कंठ तक भरे निकले।
सीने में छिपाए बैठे हैं वो भी दर्द हजारों
दुनिया की नज़रों में जो मसख़रे निकले।
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