अनामिका सिंह 'अना' |
होकर अधुनातन ।
उन्नति हेतु नित्य चढ़े हम
अवनति की सीढ़ी ।
संवादी स्वर मूक हु़ये हैं ,
पीढ़ी दर पीढ़ी ।
रिश्तों में अनवरत बढ़ा है
घातक विस्थापन ।
दादी नानी परी कहानी
सब बीते किस्से ।
चंपक नंदन सब चंपत , है
सूनापन हिस्से ।
बचपन में ही है बच्चों से
बचपन की अनबन ।
काट मूल मशगूल अर्थ का ,
तक्र बिलोने में ,
अनुभव के आकाश बिठाये
हमने कोने में ।
उधड़ गयी है जोड़ -गुणा में ,
रिश्तों की सीवन ।
चैन हमारा रहीं निरंतर ,
लिप्सायें पीती ।
निहित स्वार्थ में अपनेपन की ,
हर अँजुरी रीती ।
समाधान अब शेष समय में ,
सिल उधड़ी तुरपन ।
0 टिप्पणियाँ