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स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी के सत्याग्रह आन्दोलन की भूमिका' पर परिचर्चा






हैदराबाद। सूत्रधार साहित्यिक संस्था एवं विश्व भाषा अकादमी की तेलंगाना इकाई के संयुक्त तत्वावधान में गांधी जयन्ती के अवसर पर आयोजित ऑनलाइन परिचर्चा गोष्ठी शनिवार की शाम को सफलतापूर्वक संपन्न हुई। आज यहां पर जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार संस्थापिका सरिता सुराणा ने बताया कि इस परिचर्चा गोष्ठी का विषय था- 'स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी के सत्याग्रह आन्दोलन की भूमिका'। लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रणाम पर्यटन पत्रिका के संपादक श्री प्रदीप श्रीवास्तव ने इस गोष्ठी की अध्यक्षता की। इसके विशेष वक्ता थे प्रसिद्ध नाटककार और साहित्यकार सुहास भटनागर और वरिष्ठ साहित्यकार गजानन पाण्डेय। कोलकाता से वेदान्त दर्शन के ज्ञाता सुरेश चौधरी ने इसमें विशेष अतिथि के रूप में भाग लिया। ज्योति नारायण की सरस्वती वंदना से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। तत्पश्चात् अध्यक्ष ने सभी अतिथियों और सहभागियों का शब्द-पुष्पों से स्वागत किया। 

परिचर्चा को प्रारम्भ करते हुए सुहास भटनागर ने कहा कि अल्बर्ट आइंस्टीन ने गांधीजी के बारे में कहा था कि एक दिन लोग आश्चर्य करेंगे कि ऐसा हाड़-मांस का पुतला इस धरती पर विचरता था। उन्होंने कहा कि सत्य का अनुभव पीड़ा से होता है, सत्य खामोश ज्वालामुखी की तरह होता है। सत्य के लिए आग्रह करना ही सत्याग्रह है और गांधीजी ने चम्पारण सत्याग्रह से इसकी शुरुआत की। चर्चा को आगे बढ़ाते हुए गजानन पाण्डेय ने कहा कि गांधीजी ने विषम परिस्थितियों में भी शाकाहार को नहीं छोड़ा। उन्होंने सविनय अवज्ञा आन्दोलन के माध्यम से अपना विरोध जताया। सत्य पर कुछ देर के लिए आवरण आ सकता है लेकिन सत्य कभी पराजित नहीं हो सकता। 

सुरेश चौधरी ने कहा कि महाभारत के शांति पर्व में सत्य के 13 रूपों यथा- नम्रता, सहिष्णुता आदि के बारे में जानकारी दी गई है। गांधीजी के सत्याग्रह से देश एकजुट हुआ और देशवासियों में आजादी की भावना जागी। हमें अन्य प्रयत्नों से भी आजादी प्राप्त करने में सहयोग मिला। गांधीजी जिद्दी स्वभाव के थे, जो काम करने की ठान लेते थे, उसे पूरा करके ही दम लेते थे। उनकी ही तरह सरदार वल्लभ भाई पटेल, मोरारजी देसाई और वर्तमान में नरेन्द्र मोदी हैं, जो जिस काम को करने की ठान लेते हैं वह पूरा करके ही छोड़ते हैं। सरिता सुराणा ने चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि गांधीजी जब सन् 1915 में  दक्षिण अफ्रीका से लौटे तो उनके राजनीतिक गुरु गोपालकृष्ण गोखले चाहते थे कि वे सक्रिय राजनीति में हिस्सा लें तब गांधीजी ने उनसे एक वर्ष का समय मांगा। इस एक वर्ष के दौरान उन्होंने देश की स्थितियों के बारे में जानकारी प्राप्त की, तब तक वे राजनीतिक विषयों पर मौन रहे। उसके बाद उन्होंने अहमदाबाद स्थित साबरमती नदी के तट पर एक आश्रम की स्थापना की और उसे 'सत्याग्रह आश्रम' का नाम दिया। प्रारम्भ में सिर्फ 25 स्त्री और पुरुष ही स्वयंसेवक के रूप में इससे जुड़े, जिन्होंने सत्य, अहिंसा, प्रेम, अपरिग्रह और अस्तेय के मार्ग पर चलने का संकल्प लिया। इन सबने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा में बिताने का निश्चय किया। गांधीजी ने जब चम्पारण में किसानों पर अत्याचार होते हुए देखा तो सत्याग्रह के माध्यम से उसका विरोध किया। उसके बाद उन्होंने खेड़ा सत्याग्रह और नमक सत्याग्रह आदि कई आन्दोलन सरकार के विरुद्ध चलाए और अंत में भारत छोड़ो आन्दोलन का नेतृत्व किया।

ज्योति नारायण ने स्वतंत्रता संग्राम में गांधीजी के अमूल्य योगदान के बारे में बताते हुए कहा कि उन्होंने अहिंसा और सत्याग्रह पर बल दिया। हरिजनों के उद्धार के लिए अनेक कार्य किए और सभी देशवासियों को एक सूत्र में बांधने के लिए हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार किया। इसके लिए उन्होंने दक्षिण भारतीय राज्यों में हिन्दी अकादमियों की स्थापना की, जो आज भी हिन्दी भाषा के विकास हेतु कार्य कर रही हैं। अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रदीप श्रीवास्तव ने कहा कि गांधी पर बात करने से पहले हमें गांधी को जानना होगा। उनके सिद्धांतों को जाने बिना हम उनका अनुसरण नहीं कर सकते। उनका अपना पुत्र हरिलाल उनसे सहमत नहीं था। उसने मुस्लिम धर्म अपना लिया था और वह उनसे अलग रहता था। गांधीजी का स्पष्ट कहना था कि अगर मेरे साथ किसी को आना है तो उनको सब कुछ त्याग कर आना होगा। उनकी एक आवाज पर उनके साथी एक साथ आते थे, उन्होंने स्वतंत्रता के लिए देशवासियों में एक अलख जगाई थी। निश्चित रूप से उनके सत्याग्रह आन्दोलन का स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान रहा। अंत में सभी सदस्यों के साथ आपस में बातचीत करते हुए अजय पाण्डेय ने कहा कि सत्याग्रह का विचार भगवान राम के समय से है, जब उन्होंने लंका जाने के लिए समुद्र से रास्ता देने की प्रार्थना की थी। दर्शन सिंह ने भी इस विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि जलियांवाला बाग हत्याकांड से गांधीजी बहुत आहत हुए। फिर भी उन्होंने सत्याग्रह का ही सहारा लिया और स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेकर महत्वपूर्ण योगदान दिया। आर्या झा ने भी इस विषय पर अपने विचार रखे। इसके अलावा डॉ. सुमन लता व भावना पुरोहित ने हैदराबाद से, प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ.आरती गोयल ने दुबई से और लेखिका मंजू रानी ने लखनऊ से इस परिचर्चा गोष्ठी में भाग लिया। बहुत ही सकारात्मक वातावरण में यह परिचर्चा गोष्ठी सम्पन्न हुई। अध्यक्ष ने सभी वक्ताओं और सहभागियों का आभार प्रकट किया। आर्या झा के धन्यवाद ज्ञापन के साथ गोष्ठी सम्पन्न हुई।

 


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