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सुनो बेटियों!


✍️रमाकान्त चौधरी

सुनो बेटियों ! स्वाभिमान हित अब हथियार उठाना होगा।

बने दुशासन घूम रहे  जो, उनको सबक सिखाना होगा।

 

आखिर कब तक जुर्म सहोगी, कब तक मुँह न खोलोगी।

इन  बहशी   हत्यारों  पर  , कब  तुम दंगा  बोलोगी।    

भरी  सभा  में चीर खिंच गया,तब भी तुम खामोश रही।

धोखा  दे  फिर  छली  गई , तब  भी तुम बेहोश रही।

बहुत बन लिया द्रोपदी अहिल्या, अब फूलन बन जाना होगा।

सुनो बेटियों ! स्वाभिमान हित अब हथियार उठाना होगा।

 

तुमसे ही जो जन्मा वह तुम पर अधिकार जमाता है।

और तुम्हारे चुप रहने से वह पौरूष दिखलाता है।

कभी जलाता चौराहों पर कभी कोख में मार रहा।

कभी लूटता वही तुम्हे , जिससे तुमको प्यार रहा।

इस बिगड़ी हुई ब्यवस्था को फिर सिस्टम पर लाना होगा।

सुनो बेटियों ! स्वाभिमान हित अब हथियार उठाना होगा।

 

मत कोई उम्मीद लगाना , बिके हुए अखबारों से।

न्याय नही मिल सकता है, इन बहरी सरकारों से।

कुर्सी जिनको प्यारी है, वे न्याय नही कर पायेंगे।

लाज शर्म जो बेंच चुके हैं,वे क्या लाज बचायेंगे।

न्याय नीति गर तुम्हे चाहिये तो खुद जज बन जाना होगा।

सुनो बेटियों ! स्वाभिमान हित अब हथियार उठाना होगा।

 


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