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समकालीन व्यंग्य के अग्रज हैं लालित्य ललित

“पांडेय जी सर्वव्यापी” का वेबिनार में लोकार्पण 



उज्जैन। लालित्य ललित जी ने कम समय में ही व्यंग्य के क्षेत्र में नाम अर्जित किया है और उनके व्यंग्य के विषयों में विविधता और सरसता है।ललित जी ने अपने  व्यंग्यों में नई उपमाओं और नए मुहावरों का सृजन किया है तथा उनका पात्र विलायतीराम पांडेय और ललित जी एक दूसरे से घुल मिल गए हैं। ललित जी समकालीन व्यंग्य के महत्वपूर्ण व्यंग्यकार होकर,समकालीन व्यंग्य के अग्रज ध्वजवाहक बनकर सामने आए हैं। यह बात व्यंग्यकार डॉ हरिशकुमार सिंह ने कवि एवं व्यंग्यकार डॉ. लालित्य ललित के ताज़ा संकलन -“पांडेय जी सर्वव्यापी” के लोकार्पण पर इक्कीसवीं सदी के साहित्यकार और यूके की वातायन संस्था द्वारा आयोजित वेबिनार में कही। यह संकलन प्रो. राजेशकुमार द्वारा संपादित किया गया है।


लोकार्पण समारोह में संकलन के संपादक प्रो. राजेशकुमार ने पुस्तक के संपादन में अपने अनुभवों व विचारों को साझा करते हुए कहा कि लालित्य ललित देश के जाने-माने कवि तथा व्यंग्यकार हैं। उनके पात्र पांडेय जी, अंतर्मन कुमार, रामपियारी, रामखेलावन जनमानस में बस चुके हैं। उनकी सक्षम लेखनी सृजनशीलता के साथ-साथ विचारों की प्रस्तुति, जनसामान्य की तरह बातचीत करने वाली धाराप्रवाह भाषा-शैली सभी को बरबस अपनी ओर आकर्षित करती है।


प्रस्तुत पुस्तक में ललित के श्रेष्ठ ग्यारह व्यंग्यों का चयन किया गया है। कार्यक्रम के प्रमुख वक्ता साहित्य अकादमी सम्मानित डॉ. नीरज दईया ने इस अवसर पर अपने विचार रखते हुए ललित के साथ अपने साहित्यिक अनुभवों को साझा किया तथा उनकी सृजनशीलता की भूरि-भूरि प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि ललित की रचनाएँ उनके हृदय के स्पंदन को प्रकट करती हैं। वे जनमानस की सोच को पाठकों के सामने रखते हैं। उनके बीच जीते हैं, उठते-बैठते और बातें करते हैं। यदि उनकी रचनाओं का टीवी सीरियल के रूप में प्रदर्शन किया जाए, तो निश्चित तौर पर यह लोगों को मनोरंजन करने में सफल होगा। ललित की लेखन कर्मठता निस्संदेह तौर पर अनुकरणीय व आदर्श है। इस पुस्तक के कुशल संपादन और लंबी विचारपूर्ण भूमिका के लिए प्रो. राजेशकुमार की जितनी प्रशंसा की जाए कम हैं।


पुस्तक के प्रकाशक तथा इंडिया नेटबुक्स के निदेशक डॉ. संजीव कुमार ने ललित की लेखन ऊर्जा व शैली की प्रशंसा करते हुए उन्हें कहा कि वे अपने प्रकाशन का लेखक कहने में बड़ा गर्व का अनुभव करते हैं। ललित की सादगी, सीधापन तथा सभी घुलने-मिलने वाली प्रवृत्ति उनकी रचनाओं में साफ झलकती है। बतौर लेखक ललित की पांडेय और उनकी दुनिया, पांडेय कहिन, सफरनामा, मजदूर कहता है, शीर्षक पुस्तकें प्रकाशित करने में मुझे गर्व होता है।


वेबिनार में व्यंग्य यात्रा के संपादक तथा प्रसिद्ध व्यंग्यकार प्रेम जनमेजय ने ललित को श्रेष्ठ व्यंग्यकार कहा है। उनके अनुसार ललित की लेखनी मंजे हुए साहित्यकार का परिचायक है। उनके व्यंग्य लेखों में सहजता, अपनापन तथा भावों का उमंग होता है। वे अनायास किसी को भी अपनी ओर खींच लेते हैं। निश्चित तौर पर इस सदी के स्थापित व्यंग्यकारों में लालित्य ललित का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाएगा। उन्होंने पुस्तक के संपादक प्रो. राजेशकुमार की भी भूरि-भूरि प्रशंसा की। इसी अवसर पर युवा ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता तथा प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरीश नवल ने लालित्य ललित के अनुसार ललित की लेखनी जनमानस की लेखनी है। वे पात्रों को हमारे बीच से उठाते हैं, गढ़ते हैं, और अपनापन का अनुभव दिलाते हैं। उनकी रचनाओं में सहजता व आकर्षण की चुंबकीय शक्ति है।


लोकार्पण व अतिथियों के वक्तव्यों के पश्चात चर्चा में पिलकेंद्र अरोड़ा, विवेक रंजन श्रीवास्तव, सुनीता शानू, रामस्वरूप दीक्षित, तीरथ सिंह खरबंदा, रमेश सैनी, डॉ. आकाश मिधा, डॉ. अजय जोशी, शशांक दुबे, हनुमान मिश्र, चंद्रकांता, टीकाराम साहू आदि गणमान्य विद्वानों ने अपनी बहुमूल्य उपस्थिति से कार्यक्रम की शोभा में चार चाँद लगाए।  कार्यक्रम के संयोजक रणविजय राव ने धन्यवाद ज्ञापन किया। प्रसिद्ध व्यंग्यकार डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ने अपने सफल तकनीकी सहयोग से कार्यक्रम को सुचारु रूप से संचालित किया।


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