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फिर से सुर्ख होने लगे मुरझाए फूल किताबों में

✍️नमिता गुप्ता 'मनसी'
क्या पता था कि इतना असर होता है जज़्बातों में ,
वरना  शब्दों की ये लकीरें पहले कहां थी हाथों में !!
 
हां माना, है ये सही कि कहीं "कुछ" तो होता है ,
फिर से सुर्ख होने लगें, मुरझाए वो फूल किताबों में !!
 
कितनीं बरसातें गई, भीगकर भी कभी भीगे नहीं ,
हुए अब तर-ब-तर अक्सर, तेरी अनकही बातों में !!
 
जरूर तुमसे मेरा कोई रूह का ही रिश्ता है शायद ,
भले हम मिलें-न मिलें, क्या रखा है इन मुलाकातों में !!
 
यूं तो बात करती थी अक्सर बारिश, धूप, पत्तों..से ,
बताया तुमने,एक ज़हान भी होता है सुदूर..तारों में !!
 
तुमने तो सदियों से छिपाकर रखें हैं कुछ वो सिक्के ,
कि खर्चेंगें एक दिन जी भर , हों भले ही ख्वाबों में !!
 

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