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जीवंतता की मिसाल एक शख़्सीयत


✍️भावना ठाकर

फ़िल्म जगत के आसमान पर झिलमिलाता एक बुलंद सितारा जो ज़िंदगी की रानाइयों से लेकर गर्दिश की गर्द का मारा। कभी उठा, कभी गिरा तो कभी आफ़ताब सा चमका। 

तू न थकेगा कभी,

तू न रुकेगा कभी,

तू न मुड़ेगा कभी,

कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,

अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।

ऐसा लगता है ये कविता आदरणीय डॉ हरिवंश राय बच्चन ने शायद अपने बेटे अमिताभ बच्चन के लिए ही लिखी थी। जी हाँ हम बात कर रहे है एक ऐसी शख़्सीयत की जिसका जीवन आजकल की पीढ़ी के लिए रोल मोडेल से कम नहीं। कोई भी शहर अपनी विभूतियों से ही पहचाना जाता है। कहीं जाने पर हम वहां की विभूतियों से जुड़ी जगहों को देखना नहीं भूलते। या उस शख़्सीयत को देखना नहीं भूलते, वैसे ही मुंबई शहर एक महान विभूति के लिए मशहूर है जिसने सफ़लता की बुलंदियों को छूकर खुद को महानायक के रुप में प्रस्थापित किया है। जो भी मुंबई जाता है अमिताभ बच्चन की एक झलक पाने के लिए बेताब होता है।


एक अनोखी शख़्सीयत के मालिक अमिताभ बच्चन अपने सहज स्वभाव और बेनमून अदाकारी के लिए मशहूर है। जिनकी आवाज़ को एक समय सबने नकार दिया था आज उनकी गहरी आवाज़ के हम सब कायल है। जादुई आवाज़ में संवाद बोलने की छटा और जायंट पर्सनैलिटी उन्हें उत्कृष्ट अदाकार की श्रेणी में स्थान देती है।  अमर अकबर एन्थनी की कोमेड़ी हो, दीवार फ़िल्म की ट्रेजेडी हो या सिलसिला में रेखा के साथ रोमांस का सीन हो। अमिताभ बच्चन की अदाकारी लाजवाब और माशाअल्लाह रहती थी। 

डायलोग के बीच में "हैंय" बोलने वाली स्टाइल पर कौन फ़िदा नहीं होगा। या कौन बनेगा करोड़पति" में होस्ट की भूमिका निभाते इस शो में उनके द्वारा किया गया 'देवियो और सज्जनो' सम्बोधन उनके सम्मान जनक व्यक्तित्व से हमें अभिभूत करता है। उनकी हर अदा निराली है कमर पर हाथ रखकर खड़े रहने की स्टाइल हो, या एक हाथ कुर्सी के पीछे टिकाकर टेबल पर पैर पर पैर चढ़ाकर बैठने की स्टाइल उनकी पर्सनैलिटी में चार चाँद लगाती है। जंजीर फ़िल्म का वो संवाद "जब तक बैठने को ना कहा जाए चुपचाप खड़े रहो ये पुलिस स्टेशन है तुम्हारे बाप का घर नहीं"। या "आज मेरे पास गाड़ी है बंगला है धन दौलत है तुम्हारे पास क्या है" यही...यही अदा से ये साबित होता है की आज भी जहाँ अमिताभ बच्चन खड़े होते है लाईन वहीं से शुरू होती है जनाब।

जहाँ लोग पचपन साठ की आयु में खुद को बुढ़ा और निकम्मा समझते है वहाँ अभिताभ बच्चन 77 की आयु में भी एक नवसिखीये विद्यार्थी की तरह हर नई टेक्नोलॉजी से जुड़कर सोशल मीडिया  पर व्यस्त रहकर देश दुनिया की ख़बर रखते अपने चाहकों से आत्मिक रिश्ता बनाए रखते है। अपने करियर के दौरान उन्‍होंने कई पुरस्‍कार जीते हैं जिसमें सर्वश्रेष्‍ठ अभिनेता के तौर पर 3 राष्‍ट्रीय फिल्‍म पुरस्‍कार भी शामिल है। इंटरनेशनल फिल्‍म फेस्टिवल्‍स और कई अवार्ड समारोहों में उन्‍हें कई पुरस्‍कारों से सम्‍मानित किया गया है। वे 14 फिल्‍मफेयर पुरस्‍कार भी जीत चुके हैं। उन्‍हें फिल्‍मफेयर में सबसे ज्‍यादा 39 बार नामांकित किया जा चुका है।  

रेखा ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि बिग बी की उदारता और रिश्तों के लिए उनकी गंभीरता मुझे उनकी तरफ आकर्षित करती है। अमिताभ बच्चन शख़्सीयत ही एसी है जिनके प्रति आकर्षित होने से कोई नहीं बच पाता। हर छोटे बड़ों के प्रति आदर रखने वाले सदी के महानायक इतनी महान हस्ती होते हुए भी उनके कदम ज़मीन से जुड़े है। 1983 में आई फिल्म 'कुली' के एक सीन में पुनीत इस्सर के साथ एक फाइट सीन में अमिताभ बच्चन बुरी तरह घायल हो गए थे। करीब 200 डोनर्स से 60 बोतल ब्लड इकट‌्ठा किया गया था। और उनके स्वास्थ्य के लिए उस वक्त मंदिर मस्जिद गुरुद्वारों में प्रार्थना करने वाले लोगों का मेला लगता था। कैसी-कैसी मन्नत से लोग अपने चहिते अदाकार को मौत के मुँह से वापस ले आए थे यही बात उनकी प्रख्याति का सबूत है। पर इस दौरान हुई लापरवाही से बिग बी हेपेटाइटिस-बी से संक्रमित हो गए थे। और पहले से ही कई गंभीर बीमारियों से जूझ चुके हैं। इनमें से कुछ को वे मात दे चुके हैं। वहीं कुछ से वे अब भी जूझ रहे हैं। वह टी बी से उभर चुके है, अस्थमा से जूझ चुके है जिसके चलते उनका 75 फीसदी लिवर खराब हो गया। और हाल ही में 77 साल की उम्र में भी कोरोना जैसी महामारी को हरा कर स्वस्थ हो गए है।

पारिवारिक हो, सामाजिक हो, कामकाज का क्षेत्र हो या अपनी फ़िल्मों का चयन हो हर क्षेत्र पर अपनी सरल छवि से परचम लहराते है। जिनके हर अंदाज़ से शालीनता छलकती हो एसी शख़्सीयत सच में सदी में कभी-कभी ही जन्म लेती है और वो है हम सबके चहिते अमिताभ बच्चन ।

अमिताभ बच्चन भारत के गौरव हैं, जिस तरह विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने हार न मानते हुए आत्मविश्वास के साथ दुनिया में अपना एक मुकाम हासिल किया वह किसी भी व्यक्ति के लिए प्रेरणा का स्रोत है। सदी के महानायक की ज़िंदगी का फ़लसफ़ा, उनकी सफ़लता का राज़ उनकी मेहनत और खुद पर भरोसा इस बात की पुष्टि करता है कि ज़िंदगी में समय और मौका बार-बार नहीं मिलता। अत: हमें कठिनाइयों में भी कामयाबी पाने का हौसला नहीं खोना चाहिए। सदी के एसे महानायक को सौ सलाम।

*बेंगुलूरु

 


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