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अहसान करके वो जताते रहे

✍️आशीष तिवारी निर्मल
अपना कह कर के वो मुझे आजमाते रहे, 
ज़ख्म वो देते गए और हम मुस्कुराते रहे! 
 
ख्वाब शीशे की तरह टूटे सब के सब मेरे
मरुस्थल में नदी बन अश्रु हम बहाते रहे! 
 
थी ग़मों की आंधियाँ यूँ चारो दिशाओं से 
 अदने दीप की तरह हम टिमटिमाते रहे! 
 
गया था उनकी बज्म में ग़म सभी मैं भूलने 
अपनी ही महफ़िल में मुझे वो रुलाते रहे!
 
उनका अहसान जीते जी ना लूंगा मैं कभी
अहसान करके वो कम ज़र्फ, जताते रहे!
 
लालगांव
रीवा मध्यप्रदेश
 

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