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मीन और नारी



✍️प्रेम बजाज


मैं भी हूं

मीन सी प्यासी,

जल- जीवन मीन का

मेरा जीवन प्यार रे ।

सुन्दर मीन को

सब कोई चाहे

ना हो रूप तो

ना पूछे संसार रे ।

 

अज़ाब-ए-तन्हाई कभी सहती तो

कभी रौनकें- महफ़िल बन जाती नारी ।

कभी करूं तकरार तो मानी जाती बेमानी,

रहूं चुप तो है कद्रदानी ।

दी ग़र कभी सदा तो नाकाम लौट आई,

अहले-जहां को रहती ना ख़बर हमारी ।

बंट  गए टुकड़े सारे

कुछ ना बचा अब बाकी है ,

ज़िन्दगी भी अब अपनी 

नहीं पराई सी लगने लगी है हमारी ।

 

कितनी दूर निकल आए हम

अब रहा ना कोई अरमान है,

वो सब जो लाए थे  साथ, 

खो  गया साजो-सामान है ।

लौट जाऊं वापिस अब ये मुमकिन नहीं ,

ढुंढने को घर वापिस

मेरे नक्श्पां भी तो नहीं ।

मछली जल की रानी ,

नारी घर की रानी ,

कभी बने सजावट का 

टुकड़ा, कभी दबाई जाए रे ,

कभी ये कुचली जाए रे, 

हाए रे मीन और नारी

एक सा कर्म लिखाए रे  । 

मैं  भी हूं मीन सी प्यासी 

जल बनता मीन का जीवन ,

मेरा जीवन प्यार रे .....

 

*जगाधरी ( यमुनानगर ) 

 


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