✍️प्रेम बजाज
कुर्सी का लालच
सब में समाया हुआ ,
हर एक कुर्सी के लिए
दौड़ है लगाता है,
बेटा छीन रहा बाप की कुर्सी
भाई - भाई को
गिराने पर लगाई है कुर्सी से ।
नेतागिरी की कुर्सी की
तो बात ही ना कीजे
छीना-झपटी कर रहा
हर इन्सान है ।
वाह री कुर्सी तेरी क्या शान है ।
तेरी खातिर चोरी डकैती ,
खून - खराबा होता है ,
कुर्सी के लिए तो पैसे वाला भी
ग़रीब के चरण तक भी धोता है ।
कुर्सी पाने को घर- घर जा
हाथ जोड़ना पड़ता है
ग़र ना मिले इमानदारी से
तो बेईमानी पे भी
उतरना पड़ता है ।
कुर्सी मिले तो रिश्ते भी बढ़ते
वरना किसी को कौन पूछे ,
वाह री कुर्सी तेरी माया
तु ही धूप तु ही छाया ,
तुने ऐसा चक्र चलाया
अपना बन जाता पल में
चाहे हो क्यूं ना वो पराया ।
जय-जय कुर्सी महामाया।
*जगाधरी (यमुनानगर)
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