✍️डॉ रघुनाथ मिश्र 'सहज'
ख्वाबों में मिलते हैं।
फूलों सा खिलते हैं।
प्यार में ऐसा असर,
होश में न रहते हैं।
मुखड़ा जो दमके है,
उसी पे मचलते हैं।
नयनों की भाषा को,
बखूबी समझते हैं।
प्रेम छिपाना मुश्किल,
ए न कभी छिपते हैं।
साथ-साथ जब रहना,
दिल क्यूँ नहिं खुलते हैं।
'सहज' प्यार दिल से है,
फिर क्यूंकर डरते हैं।
*कोटा(राजस्थान)
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