✍️प्रदीप ध्रुव भोपाली
ज़िन्दगी पर सवाल आया है।
बेबफा ये ख्याल आया है।
रोज ढलती है ज़िन्दगी नाज़ुक
खामखां ये बवाल आया है।
ज़िन्दगी भर जिसे नहीं फुरसत
बाद मरने कमाल आया है।
जब हुई रुखसती जहां से तब
नाम से उसके माल आया है।
आरज़ू क्या पता न पूरी हो
इस ज़ेहन में मलाल आया है।
इश्क़ में जब बढ़े कदम अपने
बीच में सख्त जाल आया है।
*भोपाल मध्यप्रदेश
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