*सुजाता भट्टाचार्य
मेरा-तेरा क्यूं छाया है जग में अंधेरा
स्वार्थ की पराकाष्ठा देखो,
मौत के मुंह में भी करें जो,
दूसरों पर घात,अपार घात।
पक्षपात के इस चक्र को देख,
है रोता हृदय,सहृदयो का,
मेरा-तेरा क्यूं छाया है जग में अंधेरा
स्वार्थ की पराकाष्ठा देखो,
मौत के मुंह में भी करें जो,
दूसरों पर घात,अपार घात।
पक्षपात के इस चक्र को देख,
है रोता हृदय,सहृदयो का,
है हिल जाता 'आस्था' से,आस्था हर एक का।
छाया है स्वार्थपरकता का घना अंधेरा।
कहने को कहते, चलते सदा धर्म की राह,
पर कर पक्षपात,ना पाए दूसरे के दुख की थाह।
है इस जगत का पालनहार एक,
ना जाने क्यों लड़ते लोग,करते उसमें भेद।
निस्वार्थ भाव से,करते देवदूत जो काम,
बरसाकर पत्थर चाहे मूर्ख करना
छाया है स्वार्थपरकता का घना अंधेरा।
कहने को कहते, चलते सदा धर्म की राह,
पर कर पक्षपात,ना पाए दूसरे के दुख की थाह।
है इस जगत का पालनहार एक,
ना जाने क्यों लड़ते लोग,करते उसमें भेद।
निस्वार्थ भाव से,करते देवदूत जो काम,
बरसाकर पत्थर चाहे मूर्ख करना
उनका काम तमाम।
कब थमेगा नफरत का ये बेढंगा नाच?
पाएंगे कब लोग इनसे विश्रांत?
एक परमात्मा,एक है आत्मा,
हर एक की होती एक ही प्रार्थना।
अंधकार में जो सबको राह दिखाए,
नासमझ लोगों को न कुछ समझ आए।
लिखा नहीं किसी ग्रंथ में ऐसा,
मानव को मानव से करें दूर कोई जैसा।
स्वार्थ भरे हृदयों ने सदा लड़ाया,
एक-दूसरे को जाने क्यों भिड़ाया।
परम इस आपातकाल में यदि ना करेंगे,
मिलकर काम,तो ना पाएंगें कभी विश्राम।
है ईश्वर 'एक',जिसके हैं बालक अनेक,
साथ मिलकर ही होंगे दूर सबके कष्ट,कलेश।
मिट जाएगा हर दिल का
कब थमेगा नफरत का ये बेढंगा नाच?
पाएंगे कब लोग इनसे विश्रांत?
एक परमात्मा,एक है आत्मा,
हर एक की होती एक ही प्रार्थना।
अंधकार में जो सबको राह दिखाए,
नासमझ लोगों को न कुछ समझ आए।
लिखा नहीं किसी ग्रंथ में ऐसा,
मानव को मानव से करें दूर कोई जैसा।
स्वार्थ भरे हृदयों ने सदा लड़ाया,
एक-दूसरे को जाने क्यों भिड़ाया।
परम इस आपातकाल में यदि ना करेंगे,
मिलकर काम,तो ना पाएंगें कभी विश्राम।
है ईश्वर 'एक',जिसके हैं बालक अनेक,
साथ मिलकर ही होंगे दूर सबके कष्ट,कलेश।
मिट जाएगा हर दिल का
भेदभाव का कलेश, भेदभावपूर्ण कलेश।।
*नई दिल्ली
*नई दिल्ली
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