✍️नमिता गुप्ता 'मनसी'
कुछ उसकी सुनी, कुछ अपनी भी कही
कुछ कहानियां अब भी अधूरी-दास्तां रही !!
ख्वाबों से मिलती मैं कैसे,पलकें ये जिद् में रहीं,
रात भर नींदें भी जागीं, कुछ नमीं उनमें रही !!
तारे भी खामोश थे, चांद चुप-चुप सा रहा
गुजरा समां ऐसे कि, कुछ बातें घर करती रहीं !!
था दौर ये ऐसा.. फिर भी शमां जलती रही,
रात ये गुजरी नहीं, कहीं मुझमें ही ठहरी रही!!
*मेरठ उ.प्र.
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